Bhimrao Ramji Ambedkar - डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवन कहानी – जन्म, संघर्ष, शिक्षा, आंदोलन और पूरा जीवन परिचय

 


**भीमराव रामजी अम्बेडकर : सम्पूर्ण जीवन कथा

एक युगपुरुष का संघर्ष, विचार और क्रांति**


प्रस्तावना

भारत के इतिहास में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनका जन्म केवल समय की आवश्यकता नहीं, बल्कि मानवता की पुकार का उत्तर होता है। डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर ऐसा ही एक नाम हैएक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपनी आँखों से सामाजिक विषमता देखी, उसे अनुभव किया और फिर उसी को जीवन के सबसे बड़े संघर्ष में बदल दिया।

वे केवल एक विद्वान नहीं थे, वे विधि शास्त्र के महारथी, अर्थशास्त्री, सामाजिक सुधारक, राजनेता, दार्शनिक, और भारत के संविधान निर्माता थे। शायद ही किसी एक व्यक्ति ने एक राष्ट्र के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ढाँचे को इतनी गहराई से प्रभावित किया हो।

यह विस्तृत जीवन-कथा आपको बताएगी कि किस तरह एक अछूतसमझे जाने वाले बच्चे ने पूरे देश की दिशा बदल दी और स्वयं इतिहास बन गया।


1. प्रारम्भिक जीवन (Early Life: 1891–1900)

जन्म और परिवार

डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू नामक सैन्य छावनी क्षेत्र में हुआ। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार थे और माता भीमाबाई सकपाल एक अत्यंत धार्मिक और संस्कारी महिला थीं।

अम्बेडकर का परिवार महार जाति से संबंधित थावह जाति जिसे समाज अस्पृश्यकहकर छूने तक से कतराता था।

बाल्यकाल में छुआछूत का अनुभव

बचपन से ही बाबासाहेब ने जातिगत भेदभाव को बहुत गहराई से महसूस किया।

उन्हें स्कूल के भीतर पीने का पानी नहीं दिया जाता था।

शिक्षक उन्हें छूकर कॉपी नहीं देखते थे।

उन्हें कक्षा की अंतिम पंक्ति में बैठाया जाता था।

लेकिन भीमराव पढ़ाई में अत्यंत तेज थे। उनके पिता अनुशासनप्रिय थे और शिक्षा को ही जीवन सुधारने का मार्ग मानते थे।


2. शिक्षा का संघर्ष (1900–1913)

स्कूली शिक्षा

सतनाम को स्कूल से उच्च शिक्षा तक पहुँचने में कई कठिनाइयाँ आईं, परंतु उन्होंने हर बाधा को अवसर में बदला।

1907 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय की मैट्रिक की परीक्षा पास की। उस समय किसी महार जाति के लड़के का मैट्रिक पास करना एक चमत्कार से कम नहीं था।

अमेरिका जाने का मार्ग

उनकी प्रतिभा देखते हुए बड़ौदा राज्य के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उन्हें विदेश में उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप प्रदान की।

1913 में वे अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय पहुँचे।
यहाँ से अम्बेडकर के जीवन का नये युग का आरम्भ हुआ।


3. कोलंबिया विश्वविद्यालय और विदेश की शिक्षा (1913–1917)

कोलंबिया विश्वविद्यालय ने अम्बेडकर की सोच को नया आकार दिया। यहाँ उन्हें पहली बार ऐसा वातावरण मिला जहाँ उन्हें कोई अछूतनहीं समझता था। वे स्वयं को एक स्वतंत्र मनुष्य की तरह महसूस करते थे।

उन्होंने यहाँ:

अर्थशास्त्र में MA

सामाजिक विज्ञान में कई शोध

PhD के लिए शोधकार्य प्रारम्भ किया

1916 में उन्होंने “National Dividend of India – A Historic and Analytical Study” पर शोधपत्र प्रस्तुत किया।
यह कार्य इतनी गहराई वाला था कि आज भी अर्थशास्त्री इसे पढ़ते हैं।


4. लंदन और राजनीतिक-विचारों का विस्तार (1917–1923)

अमेरिका से लौटने के बाद उन्हें बड़ौदा राज्य में नौकरी करनी थी, पर वहाँ भी उनकी जाति के प्रति अमानवीय व्यवहार शुरू हुआ।
कुछ महीनों में ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और फिर से विदेश चले गए।

लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स (LSE)

यहाँ से उन्होंने:

D.Sc (Economics)

Barrister-at-Law
की उपाधि प्राप्त की।

उस समय भी दलित समाज के किसी व्यक्ति के लिए यह उपलब्धि अनसुनी थी।


5. भारत लौटना और सामाजिक आंदोलन (1923–1930)

अब भारत में एक नया अम्बेडकर लौटा
एक शिक्षित, वैचारिक रूप से परिपक्व और समाज परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध नेता।

मूकनायक और बहिष्कृत भारत

उन्होंने जाति प्रथा पर प्रहार करते हुए कई समाचार पत्र चलाए, जिनमें

मूकनायक (1920)

बहिष्कृत भारत (1927)
सबसे मुख्य थे।

महाड़ सत्याग्रह (1927)

महाड तालाब दलितों के लिए प्रतिबंधित था।
अम्बेडकर ने हिन्दू समाज की पवित्रता-अपवित्रता की अवधारणाओं को चुनौती देते हुए हजारों साथियों के साथ पानी पिया।
यह आंदोलन भारत के इतिहास में दलित स्वतंत्रता का पहला बड़ा संघर्ष था।

मनुस्मृति दहन

1927 में अम्बेडकर और उनके साथियों ने मनुस्मृति की प्रतियां जलाईं।
यह प्रतीक था
मानव समानता के खिलाफ किसी भी विचारधारा को स्वीकार नहीं किया जा सकता।


6. गोलमेज सम्मेलन और पूना पैक्ट (1930–1932)

1st & 2nd Round Table Conference – 1930-31

ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजनीतिक संरचना पर चर्चा के लिए गोलमेज सम्मेलन बुलाए।
डॉ. अम्बेडकर को दलितों के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया।

उन्होंने वहाँ दृढ़ता से कहा:

हम हिंदू समाज के गुलाम नहीं हैं। हम स्वतंत्र नागरिक हैं और हमें राजनीतिक स्वतंत्रता चाहिए।

अलग निर्वाचन क्षेत्र की माँग

अम्बेडकर ने दलितों के लिए Separate Electorates (अलग चुनाव) की माँग की।
गांधीजी इसका विरोध करते थे।
गांधीजी ने यरवदा जेल में अनशन शुरू कर दिया।
देश में तनाव बढ़ गया।

पूना पैक्ट (1932)

अंततः दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ

अलग निर्वाचन क्षेत्र नहीं होगा

लेकिन दलितों को आरक्षित सीटें मिलेंगी

प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाएगा

यह समझौता भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ था।


7. धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक सुधार (1932–1946)

इस अवधि में बाबासाहेब ने शिक्षा और स्वाभिमान को मुख्य लक्ष्य बनाया।

Depressed Classes Federation (1930)

उन्होंने दलितों को राजनीतिक रूप से संगठित किया।

पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी (1945)

इसके माध्यम से वे दलितों के लिए कॉलेज और संस्थान खोलते रहे।
आज मुंबई का सिद्धार्थ कॉलेज उसी का परिणाम है।


8. भारत की संविधान सभा और संविधान निर्माण (1946–1950)

संविधान सभा में प्रवेश

1946 में जब संविधान सभा बनी, अम्बेडकर को उसमें स्थान नहीं मिला, क्योंकि उनके क्षेत्र में कांग्रेस मजबूत थी।
परंतु बंगाल के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उनके लिए सीट छोड़ी और वे संविधान सभा में चुने गए।

Drafting Committee के अध्यक्ष

29 अगस्त 1947 को उन्हें संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
उनकी जिम्मेदारी
भारत के लिए एक ऐसा संविधान बनाना, जिसमें

समानता

स्वतंत्रता

न्याय

मानवाधिकार
की गारंटी हो।

भारतीय संविधान की रचना

उन्होंने दुनिया के 60 से अधिक देशों के संविधानों का अध्ययन किया।
भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा और अनोखा लोकतांत्रिक दस्तावेज बना।

उनकी दृष्टि तीन मुख्य सिद्धांतों पर आधारित थी:

Liberty – स्वतंत्रता

Equality – समानता

Fraternity – बंधुत्व

अम्बेडकर का मानना था कि

राजनीतिक लोकतंत्र तभी टिकेगा जब सामाजिक लोकतंत्र भी स्थापित होगा।


9. स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री (1947–1951)

अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया।

इस दौरान उन्होंने

महिला अधिकार

विवाह सुधार

उत्तराधिकार कानून

सामाजिक न्याय
के लिए कई बिल लाए।

Hindu Code Bill उनकी सबसे महत्वपूर्ण कोशिश थी।
यह महिलाओं को समान अधिकार देने का प्रयास था।
लेकिन विरोध के कारण यह पास नहीं हो सका और वे मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर बाहर हो गए।


10. बौद्ध धर्म की ओर अग्रसर (1951–1956)

अम्बेडकर हिंदू धर्म में छुआछूत से परेशान थे।
1940
के दशक से ही उन्होंने घोषणा कर दी थी:

मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ, पर हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं।

उन्होंने बौद्ध धर्म का गहरा अध्ययन किया।
उन्हें लगा कि बौद्ध धर्म:

समानता

तर्क

अहिंसा
और

मानव स्वतंत्रता
पर आधारित है।

14 अक्टूबर 1956 – दीक्षा

नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया।
यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण सामाजिक आंदोलन था।


11. अंतिम समय और निधन (1956)

अम्बेडकर ने जीवन का हर क्षण लिखने, सोचने और सुधार के लिए लगाया।
लेकिन अत्यधिक परिश्रम और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया।
उन्हें श्रद्धा से महापरिनिर्वाणकहा गया।


12. विचारधारा और दर्शन

1. सामाजिक लोकतंत्र

समानता के बिना लोकतंत्र अधूरा है।

2. शिक्षा

शिक्षा ही स्वाभिमान और स्वतंत्रता का सबसे बड़ा हथियार है।

3. आत्म-सम्मान

खुद को कमजोर मत समझो, अधिकार मांगो।

4. संविधानवाद

कानून ही समाज को सभ्य और न्यायपूर्ण बनाता है।

5. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

तर्क और विज्ञान के आधार पर जीवन जियो।


13. डॉ. अम्बेडकर की मुख्य उपलब्धियाँ

भारत के संविधान निर्माता

स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री

विश्व स्तरीय अर्थशास्त्री

दलितों के सबसे बड़े सामाजिक नेता

भारत रत्न (1990)

श्रमिक महिला अधिकारों के पुनर्गठक

बौद्ध पुनर्जागरण के नायक


14. निष्कर्ष एक युग-पुरुष की विरासत

डॉ. भीमराव अम्बेडकर केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार, एक चेतना और एक क्रांति हैं।
उन्होंने जिस समाज में दलित होना अपराध माना जाता था, उस समाज में

समानता

न्याय

स्वतंत्रता
का बीज बोया।

वे हमेशा कहते थे:

मनुष्य महान जन्म से नहीं, अपने कर्मों से बनता है।

आज भारत का संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक न्यायसब कुछ अम्बेडकर के सपनों का ही विस्तार है।

 Post By - The Shayari World Official

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