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Ravana's last letter - मृत्यु शय्या से मानव समाज को दिए अमर उपदेश

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  📜 रावण का अंतिम पत्र – मृत्यु शय्या से मानव समाज के लिए संदेश प्रिय मानव समाज, आज मैं मृत्यु शय्या पर पड़ा हूँ। मेरी सांसें धीमी हो रही हैं, शरीर कमजोर पड़ चुका है और प्राण धीरे-धीरे साथ छोड़ रहे हैं। किंतु अनुभव और ज्ञान अब भी शेष है। जीवनभर मैंने सामर्थ्य, धन, वैभव और विद्या अर्जित की। मैंने त्रिलोक में अपनी शक्ति का परिचय दिया। मेरे पास वह सब था, जिसकी कल्पना कोई भी मनुष्य कर सकता है। परंतु आज, जब मृत्यु सामने खड़ी है, तो मुझे लगता है कि यह सब केवल मृगतृष्णा थी। मैं यह पत्र इसलिए लिख रहा हूँ ताकि मेरी गलतियों से तुम सब सीख सको। मैं चाहता हूँ कि जो भूल मैंने की, वह कोई और न दोहराए। मेरी असफलताओं, मेरे अहंकार और मेरे अपराधों से शिक्षा लो, ताकि तुम्हारा जीवन सच्चे अर्थों में सफल हो सके। 🌿 जीवन की सबसे बड़ी भूल – शुभ कार्य में विलंब मेरी पहली और सबसे बड़ी भूल यह रही कि मैंने धर्म के मार्ग को देर से पहचाना। जब श्रीराम मेरे सामने आए थे, तब भी मेरे पास अवसर था कि मैं उन्हें मित्र मान लूँ, सीता को लौटा दूँ और एक धर्मात्मा राजा के रूप में इतिहास में अमर हो जाऊँ। परंतु मैंने देर कर दी...