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मौलिक शायरी

  तुम्हारी याद ने जो दीप जलाए रात भर, नींद आई भी तो ख़्वाबों में थे तुम बार-बार। तेरे आने से रूह को पंख मिल गए, वरना साँसों के सफ़र में धूल ही धूल थी। दीवार-ए-वक़्त पर नाम तुम्हारा लिख दिया, बरसात आई तो दिल ने उसे फिर पढ़ लिया। भीड़ में हूँ मगर आवाज़ बस मेरी है, तुम थे तो शहर था, अब तो सन्नाटा ही है। नक़्श पाँव का तेरी राह में रहने दिया, ताकि लौट के कभी आए तो पहचान लो। मैंने चाँद से कहा, तेरी खबर लाए कोई, वो मुस्कुरा के बोला—खिड़कियाँ खुली रखो। तुम्हारी आँख का काजल भी मेरे हक़ में बोले, कलम से पहले दिल ने इकरार लिख दिया। रास्ते पूछते हैं मंज़िलें किस तरफ़ जाएँ, तेरा हाँ कह देना नक़्शा बदल देता है। जो पतंग-सा था दिल, आसमाँ तक जा पहुँचा, तेरी उँगलियों ने जब डोर थाम ली। बूँदें गिरें तो लगे जैसे दुआ होती हो, तेरा नाम लिए हैं बादल भी झुके-झुके। चाँद ने आईना देखा तो शरम-सा आया, तेरे चेहरे की तरह लगने लगा आज रात। रात भर रोशनी रखी तेरी यादों ने, सुबह हुई तो मेरे कमरे में तारा निकला। रेत पर भी कश्ती उतार दी मैंने, तुमने बस इतना कहा—किनारा होगा। जो तीर लगना था, वो फूल बन के लगा, तुम मुस्कुरा...