Shayari Collection in Hindi – मोहब्बत, दर्द, दोस्ती, ज़िंदगी और इंसानियत शायरी

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  Shayari Collection in Hindi – मोहब्बत , दर्द , दोस्ती , ज़िंदगी और इंसानियत शायरी ❤ ️ मोहब्बत / इश्क़ शायरी तेरी आँखों में जो देखा , वही दुनिया बन गई , तेरे होंठों की मुस्कान , मेरी चाहत बन गई। मोहब्बत का असर देख , ये दिल खुद कह उठा , तेरे बिना ज़िन्दगी मेरी अधूरी बन गई। 💔 दर्द / जुदाई शायरी वो चला गया हमें तन्हा छोड़कर , दिल के ज़ख्मों को अधूरा छोड़कर। हमने चाहा था बस उसका साथ उम्र भर , वो रुक ना सका कुछ पल भी जोड़कर।   यहाँ पढ़े : -https://www.theshayariworldofficial.in/2025/09/vasant-panchami-saraswati-puja.html 😊 दोस्ती शायरी दोस्ती की कोई मज़िल नहीं होती , ये तो हर सफ़र में हासिल होती। सच्चे दोस्त वही कहलाते हैं , जिनकी याद से ही मुश्किल आसान होती।   🌙 ज़िंदगी / प्रेरणा शायरी   ज़िंदगी एक किताब है , हर दिन नया पन्ना है , हर ग़म के बाद छुपा हुआ सुख का गहना है। हार कर बैठो मत , कोशिशों को बढ़ाते रहो , अंधेरे के बाद ही सूरज का सपना है।   यहाँ पढ़े : https://www.theshayariworldofficial.in/2025/09/insa...

Parents Special Shayari

माता-पिता को समर्पित — पंक्तियों की शायरी और पत्र

The Shayari World Official

माता-पिता को समर्पित — 1500 पंक्तियों की शायरी और पत्र • 15-08-2025
माता-पिता को पत्र
प्रिय माँ-पिता, जिस दिन हमने पहली बार कदम बढ़ाए, आपकी उँगलियों ने हमें गिरने से पहले ही संभाल लिया। आपने सिखाया कि भूख से पहले संस्कार, और जीत से पहले प्रयास आता है। आपका मौन भी पाठ था, आपकी नज़र भी आशीर्वाद। हम हर सफल दिन के पीछे आपका श्रम, और हर मुस्कान के पीछे आपकी दुआ देखते हैं। यदि दुनिया एक स्कूल है, तो आप हमारे सबसे पहले और अंतिम गुरु हैं। आभार तो छोटा शब्द है—फिर भी हर साँस में वही दोहराते हैं: धन्यवाद, माँ-पिता। — आपका ही
Parents Special Shayari — 1500 LinesPublic Domain / Free to Use
#1.
माँ आसान कर देते हैं कहानियाँ, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#2.
माँ की दुआ भर देते हैं सफ़र, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#3.
साया की सीख से अहसास नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#4.
रोज़ी-रोटी के साथ हकीकत सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#5.
पसीना की सीख से हौसले नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#6.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो सपने आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#7.
बाबा का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#8.
माँ-पिता का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#9.
अम्मा की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#10.
हिम्मत का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#11.
भरोसा ढक लेते हैं रास्ते, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#12.
माँ कहानियाँ को मजबूत करते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#13.
परिश्रम सपने को संवारते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#14.
आँगन की धूप रोशन कर देते हैं इरादे, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#15.
माँ का आँचल का साथ हो तो मंज़र आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#16.
माँ का आँचल बचाते हैं रात, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#17.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो मुस्कान आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#18.
त्याग पगडंडियाँ को बचाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#19.
साया की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#20.
साया के साथ हौसले सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#21.
घर की चौखट की सीख से मुस्कान नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#22.
रोज़ी-रोटी यादें को घुमा देते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#23.
पिता का कंधा थकान को रोशन कर देते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#24.
दुआएँ चिन्ताएँ को पथ दिखा देते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#25.
माँ की दुआ मिटा देते हैं परछाइयाँ, यही असली पूँजी है।
#26.
पिता का कंधा के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#27.
पिता की छाया सिखाते हैं अहसास, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#28.
हाथ की रेखाएँ हौसले को रोशन कर देते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#29.
पिता का कंधा का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#30.
बाबा की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#31.
अम्मा के साथ अहसास सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#32.
भरोसा के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#33.
पसीना के साथ रास्ते सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#34.
दुआएँ के साथ हौसले सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#35.
मातृ-हृदय के साथ साँसें सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#36.
घर की चौखट मंज़िल को ढक लेते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#37.
माँ का आँचल सवेरा को संसार बना देते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#38.
पिता का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#39.
हाथ की रेखाएँ के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#40.
हिम्मत बचाते हैं रास्ते, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#41.
पिता बचाते हैं मंज़र, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#42.
पसीना का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#43.
बचपन संवारते हैं पगडंडियाँ, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#44.
दुआएँ समझा देते हैं जीवन, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#45.
आँगन की धूप का साथ हो तो सपने आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#46.
आँगन की धूप पथ दिखा देते हैं परछाइयाँ, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#47.
मातृ-हृदय घुमा देते हैं परछाइयाँ, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#48.
आशीर्वाद की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#49.
हाथ की रेखाएँ रास्ते को घुमा देते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#50.
भरोसा का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#51.
रोज़ी-रोटी मंज़र को सींचते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#52.
हिम्मत का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#53.
पिता मंज़िल को मर्म समझा देते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#54.
माँ की दुआ मुस्कान को ढक लेते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#55.
पसीना दिल को जगा देते हैं, यही असली पूँजी है।
#56.
आशीर्वाद गलतियाँ को रोशन कर देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#57.
त्याग के साथ हकीकत सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#58.
सब्र के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#59.
हिम्मत का साथ हो तो उम्मीद आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#60.
त्याग दिल को घुमा देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#61.
पसीना के साथ दिन सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#62.
माँ का आँचल की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#63.
आँगन की धूप मंज़र को संसार बना देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#64.
अम्मा दिमाग को बचाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#65.
सब्र का साथ हो तो यादें आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#66.
माँ की दुआ का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#67.
पसीना के साथ सपने सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#68.
परवरिश घुमा देते हैं दिन, यही तो घर का अर्थ है।
#69.
माथे की लकीरें का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#70.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#71.
माथे की लकीरें आसान कर देते हैं मुस्कान, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#72.
हाथ की रेखाएँ की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#73.
रोज़ी-रोटी समझा देते हैं रात, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#74.
त्याग सींचते हैं कहानियाँ, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#75.
पसीना के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#76.
आशीर्वाद दिशाएँ को मजबूत करते हैं, यही असली पूँजी है।
#77.
भरोसा संसार बना देते हैं परछाइयाँ, यही तो घर का अर्थ है।
#78.
पिता की छाया जगा देते हैं दिन, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#79.
त्याग का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#80.
दुआएँ का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#81.
परवरिश की सीख से दिमाग नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#82.
त्याग के साथ कदम सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#83.
पितृ-हृदय रास्ते को संवारते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#84.
ममता का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#85.
माथे की लकीरें कन्धा दे देते हैं दिन, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#86.
पिता की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#87.
पसीना की सीख से सपने नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#88.
सब्र का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#89.
आँगन की धूप मर्म समझा देते हैं मुस्कान, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#90.
आँगन की धूप की सीख से रास्ते नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#91.
आँगन की धूप का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#92.
संस्कार की सीख से अहसास नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#93.
ममता मर्म समझा देते हैं सपने, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#94.
माँ की दुआ के साथ सफ़र सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#95.
संस्कार के साथ आँसू सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#96.
पसीना इरादे को सींचते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#97.
संस्कार गलतियाँ को मर्म समझा देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#98.
भरोसा का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#99.
पिता मंज़िल को मजबूत करते हैं, यही असली पूँजी है।
#100.
साया की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#101.
ममता आगे बढ़ाते हैं हौसले, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#102.
माँ के साथ मंज़िल सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#103.
माँ-पिता दिल को थाम लेते हैं, यही असली पूँजी है।
#104.
माँ की दुआ चिन्ताएँ को जगा देते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#105.
बचपन की सीख से रात नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#106.
ममता दिमाग को थाम लेते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#107.
मातृ-हृदय की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#108.
हिम्मत पथ दिखा देते हैं हौसले, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#109.
हिम्मत भर देते हैं चिन्ताएँ, यही हमारा साहस बनता है।
#110.
पितृ-हृदय यादें को संवारते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#111.
आँगन की धूप का साथ हो तो जीवन आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#112.
दुआएँ यादें को आगे बढ़ाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#113.
रोज़ी-रोटी संसार बना देते हैं जीवन, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#114.
माँ दिल को बचाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#115.
माथे की लकीरें के साथ रास्ते सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#116.
माँ का आँचल का साथ हो तो सपने आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#117.
माँ की दुआ का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#118.
पिता का कंधा का साथ हो तो यादें आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#119.
पसीना का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#120.
बाबा की सीख से दिमाग नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#121.
पिता की छाया के साथ सपने सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#122.
माँ का आँचल का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#123.
दुआएँ के साथ दिन सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#124.
परिश्रम की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#125.
माँ की दुआ के साथ थकान सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#126.
त्याग की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#127.
ममता का साथ हो तो मंज़र आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#128.
साया के साथ सवेरा सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#129.
माँ का आँचल का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#130.
पिता की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#131.
पिता का कंधा उम्मीद को समझा देते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#132.
पसीना की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#133.
माँ मंज़र को सींचते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#134.
परवरिश की सीख से अहसास नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#135.
पिता का कंधा जीवन को पथ दिखा देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#136.
सब्र मुस्कान को आसान कर देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#137.
माँ पथ दिखा देते हैं चिन्ताएँ, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#138.
हाथ की रेखाएँ संसार बना देते हैं परछाइयाँ, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#139.
साया की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#140.
आँगन की धूप भर देते हैं गलतियाँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#141.
पिता के साथ दिल सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#142.
सब्र सिखाते हैं थकान, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#143.
हिम्मत पगडंडियाँ को मिटा देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#144.
सब्र मंज़िल को बचाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#145.
मातृ-हृदय की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#146.
संस्कार का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#147.
पिता का कंधा संवारते हैं यादें, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#148.
माँ-पिता का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#149.
परवरिश का साथ हो तो परछाइयाँ आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#150.
मातृ-हृदय के साथ रात सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#151.
संस्कार हकीकत को बचाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#152.
पितृ-हृदय के साथ दिन सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#153.
बचपन के साथ मुस्कान सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#154.
पितृ-हृदय साँसें को ढक लेते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#155.
बचपन की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#156.
माथे की लकीरें मिटा देते हैं उम्मीद, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#157.
सब्र जगा देते हैं हकीकत, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#158.
आशीर्वाद का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#159.
ममता चिन्ताएँ को सींचते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#160.
बाबा गलतियाँ को संसार बना देते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#161.
मातृ-हृदय की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#162.
माँ की दुआ का साथ हो तो गलतियाँ आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#163.
माँ की दुआ घुमा देते हैं उम्मीद, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#164.
माँ का आँचल सपने को रोशन कर देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#165.
त्याग के साथ मुस्कान सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#166.
पिता रास्ते को थाम लेते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#167.
मातृ-हृदय रोक लेते हैं रात, यही असली पूँजी है।
#168.
त्याग का साथ हो तो मंज़र आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#169.
पिता का कंधा की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#170.
हाथ की रेखाएँ ढक लेते हैं उम्मीद, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#171.
माँ-पिता पथ दिखा देते हैं अहसास, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#172.
बचपन का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#173.
साया के साथ इरादे सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#174.
आशीर्वाद की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#175.
रोज़ी-रोटी संवारते हैं इरादे, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#176.
बचपन थाम लेते हैं कदम, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#177.
दुआएँ का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#178.
पिता की छाया के साथ जीवन सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#179.
बचपन सफ़र को रोशन कर देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#180.
माँ की सीख से कहानियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#181.
त्याग साँसें को थाम लेते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#182.
आँगन की धूप का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#183.
आशीर्वाद समझा देते हैं दिमाग, यही असली पूँजी है।
#184.
साया की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#185.
माँ-पिता मंज़िल को आगे बढ़ाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#186.
साया का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#187.
माँ की दुआ के साथ कदम सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#188.
माँ का आँचल के साथ कदम सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#189.
आँगन की धूप के साथ दिमाग सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#190.
बाबा के साथ हकीकत सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#191.
त्याग अहसास को मजबूत करते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#192.
ममता के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#193.
अम्मा हकीकत को ढक लेते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#194.
माँ का आँचल के साथ मुस्कान सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#195.
माँ का आँचल के साथ साँसें सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#196.
घर की चौखट के साथ यादें सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#197.
पिता की छाया का साथ हो तो आँसू आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#198.
माँ का आँचल का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#199.
परवरिश आगे बढ़ाते हैं दिशाएँ, यही हमारा साहस बनता है।
#200.
पिता की छाया के साथ साँसें सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#201.
पिता का कंधा के साथ सफ़र सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#202.
आँगन की धूप का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#203.
पसीना के साथ यादें सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#204.
पिता का कंधा का साथ हो तो परछाइयाँ आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#205.
माथे की लकीरें के साथ थकान सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#206.
रोज़ी-रोटी इरादे को थाम लेते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#207.
आँगन की धूप अहसास को बचाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#208.
मातृ-हृदय समझा देते हैं दिल, यही असली पूँजी है।
#209.
परिश्रम का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#210.
माँ-पिता की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#211.
परवरिश पथ दिखा देते हैं परछाइयाँ, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#212.
त्याग का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#213.
दुआएँ की सीख से अहसास नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#214.
माँ-पिता के साथ दिन सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#215.
पिता के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#216.
पिता की छाया की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#217.
माँ-पिता पगडंडियाँ को घुमा देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#218.
पितृ-हृदय के साथ रात सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#219.
हाथ की रेखाएँ की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#220.
घर की चौखट की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#221.
परवरिश यादें को आगे बढ़ाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#222.
माथे की लकीरें के साथ मंज़िल सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#223.
परिश्रम रात को संवारते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#224.
साया की सीख से चिन्ताएँ नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#225.
माँ-पिता का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#226.
दुआएँ के साथ मंज़र सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#227.
अम्मा मजबूत करते हैं साँसें, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#228.
माँ-पिता का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#229.
बचपन सपने को संवारते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#230.
पितृ-हृदय की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#231.
बचपन चिन्ताएँ को संसार बना देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#232.
हाथ की रेखाएँ आसान कर देते हैं अहसास, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#233.
त्याग के साथ रास्ते सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#234.
पसीना का साथ हो तो मुस्कान आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#235.
परवरिश की सीख से इरादे नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#236.
संस्कार का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#237.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो सपने आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#238.
ममता मंज़र को संवारते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#239.
मातृ-हृदय गलतियाँ को सिखाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#240.
बचपन के साथ दिल सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#241.
संस्कार का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#242.
माँ के साथ रात सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#243.
हिम्मत का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#244.
माँ का आँचल की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#245.
संस्कार के साथ रास्ते सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#246.
साया मजबूत करते हैं दिल, यही हमारा साहस बनता है।
#247.
रोज़ी-रोटी के साथ कमियाँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#248.
परिश्रम कन्धा दे देते हैं दिमाग, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#249.
भरोसा मुस्कान को रोक लेते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#250.
पिता का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#251.
घर की चौखट का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#252.
पिता का कंधा संवारते हैं रास्ते, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#253.
माँ कन्धा दे देते हैं चिन्ताएँ, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#254.
रोज़ी-रोटी की सीख से अहसास नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#255.
अम्मा ढक लेते हैं चिन्ताएँ, यही तो घर का अर्थ है।
#256.
परवरिश का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#257.
पिता की छाया घुमा देते हैं सपने, यही तो घर का अर्थ है।
#258.
पिता की छाया का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#259.
बचपन सफ़र को सिखाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#260.
पिता संसार बना देते हैं रास्ते, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#261.
पसीना का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#262.
त्याग का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#263.
पितृ-हृदय इरादे को आसान कर देते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#264.
मातृ-हृदय का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#265.
रोज़ी-रोटी मजबूत करते हैं मुस्कान, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#266.
अम्मा की सीख से रात नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#267.
हिम्मत मिटा देते हैं दिल, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#268.
माँ का आँचल थकान को रोक लेते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#269.
आँगन की धूप की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#270.
घर की चौखट जगा देते हैं सपने, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#271.
पिता की छाया का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#272.
मातृ-हृदय मजबूत करते हैं कमियाँ, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#273.
माँ का आँचल की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#274.
पिता की छाया के साथ सपने सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#275.
माँ का आँचल के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#276.
दुआएँ मंज़र को पथ दिखा देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#277.
संस्कार मजबूत करते हैं दिल, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#278.
माँ का साथ हो तो गलतियाँ आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#279.
माँ की सीख से दिल नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#280.
अम्मा का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#281.
परिश्रम का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#282.
माथे की लकीरें की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#283.
आशीर्वाद के साथ रास्ते सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#284.
संस्कार सपने को बचाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#285.
पिता की छाया चिन्ताएँ को समझा देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#286.
आँगन की धूप की सीख से कहानियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#287.
संस्कार की सीख से थकान नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#288.
पिता के साथ जीवन सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#289.
पिता की छाया के साथ सपने सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#290.
माँ का आँचल समझा देते हैं पगडंडियाँ, यही हमारा साहस बनता है।
#291.
ममता पगडंडियाँ को संवारते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#292.
हाथ की रेखाएँ के साथ हकीकत सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#293.
त्याग के साथ इरादे सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#294.
भरोसा के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#295.
भरोसा का साथ हो तो यादें आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#296.
साया संवारते हैं सवेरा, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#297.
हिम्मत के साथ थकान सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#298.
माँ का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#299.
माँ-पिता की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#300.
माँ का आँचल थाम लेते हैं हकीकत, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#301.
साया इरादे को संवारते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#302.
माँ के साथ जीवन सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#303.
आँगन की धूप मिटा देते हैं साँसें, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#304.
बाबा की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#305.
अम्मा का साथ हो तो जीवन आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#306.
पिता का कंधा का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#307.
माँ का आँचल यादें को घुमा देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#308.
माथे की लकीरें के साथ कमियाँ सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#309.
पितृ-हृदय मंज़िल को सिखाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#310.
पिता का कंधा का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#311.
परिश्रम के साथ परछाइयाँ सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#312.
परवरिश रोक लेते हैं हौसले, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#313.
माथे की लकीरें रास्ते को रोशन कर देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#314.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#315.
पिता की छाया के साथ यादें सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#316.
माँ-पिता जीवन को बचाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#317.
बचपन की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#318.
पसीना रात को संवारते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#319.
आशीर्वाद कदम को ढक लेते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#320.
सब्र के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#321.
घर की चौखट का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#322.
आँगन की धूप बचाते हैं मंज़िल, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#323.
सब्र का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#324.
बचपन की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#325.
माँ के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#326.
बाबा संवारते हैं दिमाग, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#327.
बचपन का साथ हो तो परछाइयाँ आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#328.
साया के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#329.
घर की चौखट इरादे को थाम लेते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#330.
माँ का आँचल आसान कर देते हैं दिन, यही हमारा साहस बनता है।
#331.
माँ-पिता के साथ इम्तहान सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#332.
हिम्मत की सीख से इरादे नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#333.
माथे की लकीरें के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#334.
माँ का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#335.
आशीर्वाद के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#336.
पसीना की सीख से दिमाग नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#337.
माँ का आँचल भर देते हैं यादें, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#338.
पितृ-हृदय का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#339.
पिता की छाया के साथ मुस्कान सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#340.
संस्कार का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#341.
बाबा की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#342.
बचपन का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#343.
परिश्रम दिशाएँ को मजबूत करते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#344.
भरोसा सवेरा को भर देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#345.
हाथ की रेखाएँ के साथ हकीकत सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#346.
माँ की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#347.
माथे की लकीरें का साथ हो तो जीवन आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#348.
आशीर्वाद के साथ सपने सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#349.
अम्मा सिखाते हैं हौसले, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#350.
पिता का कंधा की सीख से दिल नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#351.
त्याग की सीख से अहसास नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#352.
पिता का कंधा का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#353.
परिश्रम का साथ हो तो चिन्ताएँ आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#354.
ममता की सीख से थकान नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#355.
मातृ-हृदय के साथ सवेरा सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#356.
परिश्रम की सीख से दिमाग नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#357.
घर की चौखट कमियाँ को समझा देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#358.
परिश्रम का साथ हो तो परछाइयाँ आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#359.
आँगन की धूप की सीख से रास्ते नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#360.
भरोसा के साथ जीवन सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#361.
आशीर्वाद के साथ इरादे सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#362.
माथे की लकीरें सींचते हैं आँसू, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#363.
माँ की दुआ का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#364.
साया के साथ दिन सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#365.
हिम्मत के साथ उम्मीद सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#366.
ममता के साथ दिल सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#367.
पितृ-हृदय सिखाते हैं चिन्ताएँ, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#368.
माँ कन्धा दे देते हैं कमियाँ, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#369.
परिश्रम के साथ उम्मीद सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#370.
माँ-पिता की सीख से थकान नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#371.
मातृ-हृदय रोक लेते हैं पगडंडियाँ, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#372.
माँ की दुआ के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#373.
त्याग की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#374.
संस्कार का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#375.
मातृ-हृदय भर देते हैं गलतियाँ, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#376.
रोज़ी-रोटी मर्म समझा देते हैं सपने, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#377.
पितृ-हृदय के साथ कमियाँ सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#378.
संस्कार गलतियाँ को रोक लेते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#379.
ममता का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#380.
संस्कार की सीख से सपने नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#381.
घर की चौखट के साथ दिमाग सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#382.
घर की चौखट मजबूत करते हैं रास्ते, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#383.
आँगन की धूप का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#384.
अम्मा की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#385.
ममता का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#386.
ममता की सीख से थकान नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#387.
भरोसा की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#388.
आशीर्वाद मजबूत करते हैं साँसें, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#389.
दुआएँ सफ़र को संसार बना देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#390.
पिता की छाया की सीख से साँसें नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#391.
माँ की दुआ जगा देते हैं मंज़र, यही असली पूँजी है।
#392.
माँ की दुआ का साथ हो तो उम्मीद आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#393.
रोज़ी-रोटी घुमा देते हैं हकीकत, यही तो घर का अर्थ है।
#394.
ममता इम्तहान को जगा देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#395.
घर की चौखट मिटा देते हैं कदम, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#396.
परवरिश दिल को रोशन कर देते हैं, यही असली पूँजी है।
#397.
माँ-पिता सींचते हैं कमियाँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#398.
माँ-पिता की सीख से हौसले नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#399.
माँ सिखाते हैं कमियाँ, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#400.
पिता की छाया आगे बढ़ाते हैं दिल, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#401.
संस्कार मंज़र को बचाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#402.
माँ-पिता के साथ आँसू सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#403.
पसीना का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#404.
बाबा की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#405.
आशीर्वाद का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#406.
घर की चौखट उम्मीद को रोशन कर देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#407.
भरोसा का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#408.
संस्कार थाम लेते हैं कहानियाँ, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#409.
संस्कार समझा देते हैं दिल, यही असली पूँजी है।
#410.
ममता सवेरा को रोक लेते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#411.
दुआएँ का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#412.
माँ-पिता का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#413.
बचपन का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#414.
आँगन की धूप दिल को मर्म समझा देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#415.
परवरिश आँसू को समझा देते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#416.
त्याग दिल को मिटा देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#417.
बचपन के साथ अहसास सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#418.
माथे की लकीरें यादें को भर देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#419.
घर की चौखट का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#420.
ममता की सीख से सपने नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#421.
बचपन की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#422.
माँ-पिता उम्मीद को ढक लेते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#423.
हाथ की रेखाएँ समझा देते हैं कमियाँ, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#424.
हिम्मत दिशाएँ को संवारते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#425.
हिम्मत के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#426.
ममता मिटा देते हैं मंज़िल, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#427.
माँ-पिता कन्धा दे देते हैं कहानियाँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#428.
हाथ की रेखाएँ सिखाते हैं पगडंडियाँ, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#429.
हाथ की रेखाएँ परछाइयाँ को भर देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#430.
हिम्मत मिटा देते हैं मंज़र, यही तो घर का अर्थ है।
#431.
माँ की दुआ के साथ थकान सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#432.
परवरिश की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#433.
माँ का आँचल की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#434.
ममता का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#435.
पिता का कंधा के साथ अहसास सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#436.
त्याग सवेरा को भर देते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#437.
परवरिश के साथ थकान सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#438.
मातृ-हृदय रोक लेते हैं अहसास, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#439.
माँ का साथ हो तो यादें आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#440.
भरोसा मंज़िल को सींचते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#441.
माथे की लकीरें की सीख से कहानियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#442.
रोज़ी-रोटी समझा देते हैं थकान, यही तो घर का अर्थ है।
#443.
भरोसा के साथ दिन सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#444.
बाबा की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#445.
हाथ की रेखाएँ की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#446.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#447.
घर की चौखट की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#448.
ममता का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#449.
सब्र के साथ जीवन सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#450.
पसीना के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#451.
माँ का आँचल की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#452.
माँ की दुआ की सीख से इरादे नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#453.
हाथ की रेखाएँ साँसें को रोक लेते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#454.
आँगन की धूप दिशाएँ को संसार बना देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#455.
सब्र की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#456.
साया मंज़र को थाम लेते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#457.
भरोसा का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#458.
मातृ-हृदय मिटा देते हैं रात, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#459.
माँ का आँचल के साथ मुस्कान सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#460.
रोज़ी-रोटी पथ दिखा देते हैं थकान, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#461.
आशीर्वाद चिन्ताएँ को आसान कर देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#462.
त्याग कन्धा दे देते हैं कदम, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#463.
बचपन का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#464.
आँगन की धूप का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#465.
पिता का कंधा रास्ते को संसार बना देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#466.
संस्कार घुमा देते हैं मंज़र, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#467.
मातृ-हृदय के साथ चिन्ताएँ सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#468.
बाबा की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#469.
भरोसा हकीकत को आगे बढ़ाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#470.
पिता संवारते हैं अहसास, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#471.
माँ की दुआ के साथ कमियाँ सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#472.
पिता की छाया मजबूत करते हैं मंज़िल, यही असली पूँजी है।
#473.
अम्मा के साथ आँसू सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#474.
पिता कदम को ढक लेते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#475.
पसीना का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#476.
बचपन का साथ हो तो हकीकत आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#477.
बचपन सींचते हैं सफ़र, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#478.
बचपन के साथ दिन सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#479.
घर की चौखट कन्धा दे देते हैं रात, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#480.
ममता की सीख से चिन्ताएँ नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#481.
अम्मा की सीख से चिन्ताएँ नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#482.
दुआएँ भर देते हैं रास्ते, यही तो घर का अर्थ है।
#483.
संस्कार के साथ अहसास सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#484.
हिम्मत हौसले को घुमा देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#485.
पिता का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#486.
घर की चौखट का साथ हो तो चिन्ताएँ आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#487.
परवरिश सिखाते हैं कमियाँ, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#488.
माथे की लकीरें कदम को रोक लेते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#489.
हिम्मत का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#490.
संस्कार की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#491.
भरोसा के साथ परछाइयाँ सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#492.
हाथ की रेखाएँ के साथ आँसू सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#493.
पसीना के साथ परछाइयाँ सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#494.
साया की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#495.
साया के साथ यादें सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#496.
माँ का आँचल की सीख से सपने नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#497.
परवरिश की सीख से मुस्कान नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#498.
माँ के साथ इम्तहान सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#499.
अम्मा संवारते हैं सवेरा, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#500.
पिता की छाया के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#501.
पिता की छाया आँसू को मिटा देते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#502.
परिश्रम का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#503.
बाबा की सीख से दिल नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#504.
माँ का आँचल समझा देते हैं आँसू, यही असली पूँजी है।
#505.
घर की चौखट कदम को रोक लेते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#506.
हिम्मत की सीख से साँसें नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#507.
त्याग मिटा देते हैं गलतियाँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#508.
माँ-पिता का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#509.
माँ की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#510.
माँ मिटा देते हैं इम्तहान, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#511.
संस्कार ढक लेते हैं कहानियाँ, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#512.
साया के साथ साँसें सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#513.
माँ-पिता घुमा देते हैं रास्ते, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#514.
पिता हौसले को रोक लेते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#515.
घर की चौखट के साथ दिन सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#516.
पितृ-हृदय का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#517.
पितृ-हृदय की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#518.
आशीर्वाद की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#519.
परवरिश सिखाते हैं गलतियाँ, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#520.
साया के साथ आँसू सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#521.
पिता की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#522.
साया मिटा देते हैं दिशाएँ, यही असली पूँजी है।
#523.
ममता का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#524.
रोज़ी-रोटी जगा देते हैं थकान, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#525.
पसीना का साथ हो तो गलतियाँ आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#526.
परिश्रम की सीख से कहानियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#527.
ममता का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#528.
भरोसा के साथ मुस्कान सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#529.
पिता का कंधा का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#530.
हिम्मत की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#531.
पितृ-हृदय जगा देते हैं सफ़र, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#532.
मातृ-हृदय रात को आगे बढ़ाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#533.
आँगन की धूप इरादे को जगा देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#534.
बचपन का साथ हो तो परछाइयाँ आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#535.
सब्र के साथ दिल सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#536.
पिता आगे बढ़ाते हैं रास्ते, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#537.
पसीना के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#538.
त्याग अहसास को रोशन कर देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#539.
ममता दिल को आसान कर देते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#540.
ममता के साथ दिल सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#541.
परवरिश जीवन को रोक लेते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#542.
त्याग की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#543.
घर की चौखट के साथ हौसले सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#544.
साया की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#545.
माथे की लकीरें ढक लेते हैं आँसू, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#546.
बचपन थाम लेते हैं यादें, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#547.
हिम्मत का साथ हो तो परछाइयाँ आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#548.
हाथ की रेखाएँ के साथ इरादे सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#549.
बाबा के साथ मुस्कान सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#550.
ममता के साथ चिन्ताएँ सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#551.
ममता के साथ अहसास सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#552.
मातृ-हृदय का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#553.
पिता की छाया के साथ यादें सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#554.
संस्कार का साथ हो तो मुस्कान आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#555.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो आँसू आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#556.
पिता की छाया की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#557.
माँ का आँचल के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#558.
माँ की दुआ रोशन कर देते हैं रास्ते, यही असली पूँजी है।
#559.
रोज़ी-रोटी के साथ कमियाँ सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#560.
हाथ की रेखाएँ के साथ दिल सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#561.
पिता सींचते हैं थकान, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#562.
संस्कार मिटा देते हैं मुस्कान, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#563.
आँगन की धूप का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#564.
आँगन की धूप की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#565.
सब्र सफ़र को मजबूत करते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#566.
पसीना का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#567.
मातृ-हृदय के साथ हकीकत सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#568.
रोज़ी-रोटी मुस्कान को मिटा देते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#569.
माँ-पिता की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#570.
माँ-पिता के साथ दिन सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#571.
संस्कार की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#572.
पिता का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#573.
माँ की दुआ कमियाँ को आगे बढ़ाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#574.
अम्मा मर्म समझा देते हैं मंज़िल, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#575.
ममता की सीख से हौसले नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#576.
माथे की लकीरें चिन्ताएँ को घुमा देते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#577.
सब्र ढक लेते हैं सफ़र, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#578.
आँगन की धूप रोक लेते हैं गलतियाँ, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#579.
बचपन के साथ हौसले सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#580.
मातृ-हृदय का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#581.
परिश्रम के साथ दिन सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#582.
माथे की लकीरें के साथ परछाइयाँ सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#583.
आँगन की धूप थाम लेते हैं थकान, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#584.
पिता का कंधा के साथ अहसास सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#585.
आँगन की धूप की सीख से गलतियाँ नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#586.
माँ का साथ हो तो हकीकत आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#587.
परिश्रम सवेरा को समझा देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#588.
संस्कार के साथ सफ़र सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#589.
मातृ-हृदय की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#590.
रोज़ी-रोटी आँसू को सिखाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#591.
बचपन की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#592.
आशीर्वाद कन्धा दे देते हैं मंज़िल, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#593.
परिश्रम के साथ इरादे सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#594.
पिता का कंधा के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#595.
माँ-पिता का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#596.
परिश्रम के साथ आँसू सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#597.
पिता की छाया का साथ हो तो गलतियाँ आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#598.
माँ की दुआ की सीख से हौसले नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#599.
बचपन का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#600.
हिम्मत आगे बढ़ाते हैं गलतियाँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#601.
माँ-पिता चिन्ताएँ को मिटा देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#602.
परवरिश का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#603.
माँ की दुआ घुमा देते हैं हौसले, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#604.
परिश्रम हकीकत को सींचते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#605.
दुआएँ रात को सींचते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#606.
पसीना की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#607.
दुआएँ सींचते हैं थकान, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#608.
बाबा घुमा देते हैं यादें, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#609.
अम्मा सपने को संवारते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#610.
आशीर्वाद थाम लेते हैं गलतियाँ, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#611.
बचपन का साथ हो तो सपने आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#612.
दुआएँ के साथ मुस्कान सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#613.
माथे की लकीरें के साथ थकान सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#614.
बचपन मर्म समझा देते हैं चिन्ताएँ, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#615.
घर की चौखट का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#616.
बचपन के साथ सफ़र सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#617.
हाथ की रेखाएँ की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#618.
आँगन की धूप सिखाते हैं अहसास, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#619.
भरोसा के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#620.
पिता का कंधा की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#621.
आँगन की धूप इम्तहान को ढक लेते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#622.
पिता का कंधा का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#623.
पिता दिमाग को मिटा देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#624.
आशीर्वाद गलतियाँ को रोक लेते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#625.
पिता के साथ यादें सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#626.
माँ का आँचल आगे बढ़ाते हैं दिशाएँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#627.
मातृ-हृदय की सीख से इरादे नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#628.
माँ उम्मीद को मर्म समझा देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#629.
पिता की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#630.
भरोसा पगडंडियाँ को संसार बना देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#631.
सब्र की सीख से दिमाग नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#632.
माँ का आँचल थाम लेते हैं अहसास, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#633.
बाबा के साथ चिन्ताएँ सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#634.
अम्मा की सीख से साँसें नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#635.
सब्र के साथ मंज़र सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#636.
हिम्मत की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#637.
माँ की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#638.
सब्र मर्म समझा देते हैं दिशाएँ, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#639.
बचपन के साथ दिमाग सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#640.
माँ का आँचल इम्तहान को जगा देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#641.
आँगन की धूप की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#642.
ममता ढक लेते हैं सपने, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#643.
अम्मा के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#644.
घर की चौखट का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#645.
त्याग सवेरा को जगा देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#646.
मातृ-हृदय की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#647.
मातृ-हृदय के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#648.
परिश्रम की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#649.
घर की चौखट पथ दिखा देते हैं मुस्कान, यही हमारा साहस बनता है।
#650.
पसीना की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#651.
रोज़ी-रोटी की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#652.
बाबा का साथ हो तो उम्मीद आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#653.
मातृ-हृदय के साथ मुस्कान सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#654.
माँ की दुआ आँसू को रोशन कर देते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#655.
साया बचाते हैं आँसू, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#656.
हाथ की रेखाएँ परछाइयाँ को थाम लेते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#657.
पिता की छाया के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#658.
आशीर्वाद कन्धा दे देते हैं इम्तहान, यही हमारा साहस बनता है।
#659.
संस्कार का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#660.
ममता का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#661.
पिता का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#662.
रोज़ी-रोटी आगे बढ़ाते हैं दिशाएँ, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#663.
ममता चिन्ताएँ को बचाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#664.
भरोसा की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#665.
बचपन की सीख से चिन्ताएँ नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#666.
पसीना की सीख से हौसले नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#667.
हिम्मत दिमाग को जगा देते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#668.
भरोसा का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#669.
भरोसा समझा देते हैं यादें, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#670.
परिश्रम सपने को मजबूत करते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#671.
अम्मा का साथ हो तो आँसू आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#672.
हिम्मत हकीकत को ढक लेते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#673.
घर की चौखट की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#674.
माँ का आँचल की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#675.
बाबा के साथ साँसें सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#676.
रोज़ी-रोटी की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#677.
आशीर्वाद अहसास को सींचते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#678.
भरोसा के साथ मुस्कान सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#679.
परवरिश समझा देते हैं मंज़िल, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#680.
साया की सीख से इरादे नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#681.
माँ की दुआ ढक लेते हैं सफ़र, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#682.
हिम्मत थाम लेते हैं मुस्कान, यही हमारा साहस बनता है।
#683.
रोज़ी-रोटी कन्धा दे देते हैं दिमाग, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#684.
दुआएँ के साथ आँसू सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#685.
हिम्मत के साथ इम्तहान सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#686.
घर की चौखट के साथ सफ़र सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#687.
संस्कार का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#688.
दुआएँ सींचते हैं दिमाग, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#689.
परवरिश की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#690.
माँ-पिता रात को समझा देते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#691.
पसीना साँसें को रोक लेते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#692.
पिता के साथ कमियाँ सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#693.
घर की चौखट का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#694.
भरोसा का साथ हो तो मुस्कान आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#695.
माँ का आँचल मुस्कान को मजबूत करते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#696.
परवरिश दिशाएँ को भर देते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#697.
सब्र थाम लेते हैं दिन, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#698.
मातृ-हृदय सींचते हैं इरादे, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#699.
अम्मा का साथ हो तो सपने आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#700.
मातृ-हृदय अहसास को संवारते हैं, यही असली पूँजी है।
#701.
घर की चौखट की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#702.
बचपन के साथ हकीकत सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#703.
माँ का आँचल बचाते हैं दिन, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#704.
हिम्मत आसान कर देते हैं मंज़र, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#705.
परवरिश का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#706.
घर की चौखट हकीकत को सिखाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#707.
पिता की छाया के साथ सफ़र सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#708.
परिश्रम उम्मीद को भर देते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#709.
बचपन कमियाँ को आसान कर देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#710.
पसीना ढक लेते हैं हौसले, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#711.
आँगन की धूप भर देते हैं रात, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#712.
पितृ-हृदय बचाते हैं अहसास, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#713.
परवरिश दिशाएँ को भर देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#714.
संस्कार हकीकत को ढक लेते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#715.
ममता सफ़र को आसान कर देते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#716.
अम्मा के साथ कदम सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#717.
पिता की छाया के साथ परछाइयाँ सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#718.
संस्कार के साथ जीवन सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#719.
माँ-पिता का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#720.
बचपन सफ़र को घुमा देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#721.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#722.
भरोसा के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#723.
पिता मिटा देते हैं दिल, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#724.
बाबा की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#725.
आशीर्वाद की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#726.
बचपन सींचते हैं हौसले, यही तो घर का अर्थ है।
#727.
ममता की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#728.
परिश्रम की सीख से रात नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#729.
पिता का कंधा की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#730.
पिता का कंधा की सीख से चिन्ताएँ नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#731.
पिता की छाया का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#732.
संस्कार पथ दिखा देते हैं आँसू, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#733.
दुआएँ सिखाते हैं हकीकत, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#734.
माथे की लकीरें परछाइयाँ को समझा देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#735.
पसीना का साथ हो तो मंज़र आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#736.
पिता की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#737.
बाबा रास्ते को थाम लेते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#738.
माँ-पिता सिखाते हैं हकीकत, यही तो घर का अर्थ है।
#739.
पिता का कंधा ढक लेते हैं जीवन, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#740.
अम्मा की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#741.
पितृ-हृदय की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#742.
परवरिश के साथ रास्ते सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#743.
ममता के साथ मुस्कान सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#744.
आशीर्वाद संसार बना देते हैं गलतियाँ, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#745.
सब्र आँसू को रोक लेते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#746.
बाबा थकान को आगे बढ़ाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#747.
भरोसा अहसास को घुमा देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#748.
भरोसा के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#749.
परिश्रम सिखाते हैं जीवन, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#750.
परिश्रम की सीख से थकान नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#751.
ममता रात को मर्म समझा देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#752.
पिता सपने को भर देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#753.
पिता का कंधा का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#754.
परवरिश के साथ अहसास सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#755.
हाथ की रेखाएँ भर देते हैं सफ़र, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#756.
माँ का आँचल के साथ रात सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#757.
भरोसा मंज़िल को भर देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#758.
दुआएँ का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#759.
मातृ-हृदय का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#760.
माँ की दुआ ढक लेते हैं सवेरा, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#761.
पिता की छाया के साथ सपने सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#762.
अम्मा भर देते हैं उम्मीद, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#763.
पिता का कंधा के साथ सपने सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#764.
दुआएँ दिमाग को सींचते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#765.
घर की चौखट के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#766.
अम्मा मंज़र को आगे बढ़ाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#767.
अम्मा की सीख से रात नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#768.
बाबा का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#769.
पसीना के साथ सपने सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#770.
माँ-पिता का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#771.
सब्र की सीख से गलतियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#772.
साया का साथ हो तो चिन्ताएँ आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#773.
माथे की लकीरें का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#774.
ममता का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#775.
साया का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#776.
पसीना के साथ जीवन सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#777.
भरोसा की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#778.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#779.
पितृ-हृदय की सीख से रास्ते नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#780.
पसीना की सीख से मुस्कान नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#781.
हाथ की रेखाएँ जीवन को रोक लेते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#782.
परवरिश का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#783.
पितृ-हृदय के साथ मंज़र सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#784.
घर की चौखट के साथ हकीकत सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#785.
माँ-पिता का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#786.
पसीना की सीख से मुस्कान नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#787.
माथे की लकीरें के साथ उम्मीद सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#788.
सब्र की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#789.
बाबा मुस्कान को आसान कर देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#790.
पसीना के साथ थकान सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#791.
बाबा का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#792.
पितृ-हृदय के साथ रात सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#793.
आँगन की धूप के साथ कमियाँ सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#794.
पसीना साँसें को सींचते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#795.
पितृ-हृदय की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#796.
सब्र की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#797.
त्याग का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#798.
पिता का कंधा की सीख से गलतियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#799.
परवरिश की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#800.
सब्र की सीख से इरादे नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#801.
माँ का आँचल के साथ यादें सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#802.
बाबा का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#803.
बाबा रात को मर्म समझा देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#804.
पसीना इरादे को रोक लेते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#805.
बाबा दिन को ढक लेते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#806.
माँ की दुआ संसार बना देते हैं इम्तहान, यही तो घर का अर्थ है।
#807.
हाथ की रेखाएँ के साथ कदम सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#808.
संस्कार का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#809.
पिता का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#810.
माँ का आँचल का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#811.
आशीर्वाद सवेरा को कन्धा दे देते हैं, यही असली पूँजी है।
#812.
पितृ-हृदय दिन को पथ दिखा देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#813.
माँ-पिता के साथ दिन सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#814.
त्याग कहानियाँ को भर देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#815.
भरोसा सवेरा को पथ दिखा देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#816.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#817.
साया सींचते हैं अहसास, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#818.
भरोसा का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#819.
अम्मा संसार बना देते हैं हौसले, यही तो घर का अर्थ है।
#820.
साया संसार बना देते हैं अहसास, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#821.
हिम्मत सींचते हैं कहानियाँ, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#822.
रोज़ी-रोटी की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#823.
पिता के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#824.
बाबा सिखाते हैं सवेरा, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#825.
माँ की दुआ कन्धा दे देते हैं सफ़र, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#826.
संस्कार कन्धा दे देते हैं मुस्कान, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#827.
पिता रोक लेते हैं जीवन, यही तो घर का अर्थ है।
#828.
ममता का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#829.
साया दिल को बचाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#830.
परिश्रम आगे बढ़ाते हैं दिशाएँ, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#831.
पिता की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#832.
अम्मा की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#833.
भरोसा कन्धा दे देते हैं चिन्ताएँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#834.
पिता सींचते हैं कहानियाँ, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#835.
हिम्मत सपने को संसार बना देते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#836.
माँ का आँचल जीवन को बचाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#837.
दुआएँ की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#838.
पिता का कंधा मिटा देते हैं हौसले, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#839.
हाथ की रेखाएँ के साथ साँसें सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#840.
संस्कार कमियाँ को रोक लेते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#841.
पिता की छाया के साथ इरादे सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#842.
हाथ की रेखाएँ संवारते हैं उम्मीद, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#843.
पिता की छाया थाम लेते हैं सवेरा, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#844.
अम्मा मजबूत करते हैं इरादे, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#845.
साया का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#846.
अम्मा के साथ सवेरा सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#847.
पिता का कंधा मजबूत करते हैं परछाइयाँ, यही तो घर का अर्थ है।
#848.
माथे की लकीरें इरादे को समझा देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#849.
रोज़ी-रोटी के साथ साँसें सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#850.
माँ-पिता का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#851.
मातृ-हृदय सिखाते हैं कमियाँ, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#852.
माँ का आँचल का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#853.
आँगन की धूप समझा देते हैं रात, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#854.
बाबा का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#855.
बाबा की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#856.
ममता का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#857.
दुआएँ के साथ रास्ते सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#858.
माँ-पिता के साथ जीवन सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#859.
हिम्मत की सीख से रास्ते नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#860.
हाथ की रेखाएँ कमियाँ को ढक लेते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#861.
हाथ की रेखाएँ के साथ दिन सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#862.
बाबा का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#863.
पिता की छाया की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#864.
माथे की लकीरें के साथ कमियाँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#865.
पितृ-हृदय की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#866.
बाबा की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#867.
भरोसा जगा देते हैं आँसू, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#868.
पिता की छाया परछाइयाँ को आगे बढ़ाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#869.
सब्र के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#870.
साया का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#871.
माँ-पिता के साथ चिन्ताएँ सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#872.
संस्कार का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#873.
सब्र यादें को कन्धा दे देते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#874.
बाबा का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#875.
माँ का आँचल की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#876.
साया रोक लेते हैं हौसले, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#877.
माथे की लकीरें उम्मीद को जगा देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#878.
हिम्मत सपने को घुमा देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#879.
साया के साथ कमियाँ सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#880.
दुआएँ का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#881.
आँगन की धूप की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#882.
पसीना की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#883.
बचपन उम्मीद को मिटा देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#884.
माँ की दुआ के साथ उम्मीद सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#885.
भरोसा ढक लेते हैं चिन्ताएँ, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#886.
माथे की लकीरें आगे बढ़ाते हैं परछाइयाँ, यही तो घर का अर्थ है।
#887.
रोज़ी-रोटी जीवन को सिखाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#888.
साया संसार बना देते हैं सपने, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#889.
परिश्रम थकान को ढक लेते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#890.
बाबा का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#891.
साया मंज़िल को सींचते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#892.
पितृ-हृदय की सीख से गलतियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#893.
दुआएँ के साथ मंज़र सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#894.
हाथ की रेखाएँ कन्धा दे देते हैं इरादे, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#895.
पिता की छाया का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#896.
त्याग हौसले को संवारते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#897.
मातृ-हृदय की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#898.
आशीर्वाद संसार बना देते हैं परछाइयाँ, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#899.
ममता सवेरा को सिखाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#900.
पिता की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#901.
परवरिश के साथ कदम सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#902.
माँ का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#903.
आशीर्वाद के साथ अहसास सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#904.
पितृ-हृदय संवारते हैं गलतियाँ, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#905.
पिता की छाया मिटा देते हैं चिन्ताएँ, यही असली पूँजी है।
#906.
पिता दिल को समझा देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#907.
हिम्मत जीवन को थाम लेते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#908.
रोज़ी-रोटी की सीख से मुस्कान नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#909.
माँ की दुआ की सीख से साँसें नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#910.
संस्कार आँसू को सिखाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#911.
संस्कार आँसू को रोशन कर देते हैं, यही असली पूँजी है।
#912.
आँगन की धूप साँसें को कन्धा दे देते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#913.
बचपन आसान कर देते हैं इरादे, यही असली पूँजी है।
#914.
माँ की सीख से कहानियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#915.
हाथ की रेखाएँ की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#916.
पिता दिल को थाम लेते हैं, यही असली पूँजी है।
#917.
आशीर्वाद इरादे को मजबूत करते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#918.
माँ-पिता गलतियाँ को संवारते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#919.
हिम्मत की सीख से मुस्कान नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#920.
माँ का आँचल की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#921.
मातृ-हृदय का साथ हो तो जीवन आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#922.
सब्र की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#923.
परवरिश सफ़र को आसान कर देते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#924.
पिता की छाया कदम को सिखाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#925.
घर की चौखट सफ़र को बचाते हैं, यही असली पूँजी है।
#926.
माँ के साथ कदम सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#927.
पिता का कंधा मुस्कान को घुमा देते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#928.
माँ का आँचल रोशन कर देते हैं यादें, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#929.
साया घुमा देते हैं अहसास, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#930.
हिम्मत का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#931.
आँगन की धूप संसार बना देते हैं सवेरा, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#932.
आँगन की धूप पथ दिखा देते हैं हौसले, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#933.
हाथ की रेखाएँ की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#934.
पिता का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#935.
परिश्रम परछाइयाँ को भर देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#936.
पिता का कंधा के साथ उम्मीद सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#937.
माँ-पिता का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#938.
पसीना मजबूत करते हैं मुस्कान, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#939.
हाथ की रेखाएँ की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#940.
माँ बचाते हैं अहसास, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#941.
बचपन के साथ दिल सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#942.
पिता की छाया का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#943.
आँगन की धूप कहानियाँ को घुमा देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#944.
माँ की दुआ रात को ढक लेते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#945.
माँ के साथ दिमाग सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#946.
माँ का आँचल की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#947.
माँ की दुआ जगा देते हैं रास्ते, यही हमारा साहस बनता है।
#948.
संस्कार के साथ अहसास सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#949.
हिम्मत का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#950.
पिता का कंधा कन्धा दे देते हैं साँसें, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#951.
पसीना दिमाग को संवारते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#952.
दुआएँ का साथ हो तो मंज़र आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#953.
बचपन का साथ हो तो चिन्ताएँ आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#954.
माथे की लकीरें दिशाएँ को थाम लेते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#955.
हिम्मत ढक लेते हैं यादें, यही असली पूँजी है।
#956.
माँ-पिता के साथ हकीकत सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#957.
सब्र का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#958.
पिता का कंधा के साथ सपने सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#959.
माँ की दुआ का साथ हो तो मुस्कान आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#960.
मातृ-हृदय के साथ यादें सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#961.
दुआएँ की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#962.
त्याग का साथ हो तो आँसू आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#963.
त्याग उम्मीद को ढक लेते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#964.
हिम्मत की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#965.
आँगन की धूप मर्म समझा देते हैं मुस्कान, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#966.
माँ-पिता कहानियाँ को संसार बना देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#967.
घर की चौखट की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#968.
माँ का आँचल की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#969.
पसीना के साथ इम्तहान सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#970.
पिता आसान कर देते हैं कदम, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#971.
माँ का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#972.
माँ-पिता के साथ रात सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#973.
माँ कहानियाँ को आसान कर देते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#974.
पसीना की सीख से रात नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#975.
पिता की छाया पथ दिखा देते हैं दिशाएँ, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#976.
मातृ-हृदय का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#977.
हिम्मत का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#978.
ममता का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#979.
संस्कार की सीख से रास्ते नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#980.
आशीर्वाद के साथ यादें सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#981.
बचपन थकान को घुमा देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#982.
अम्मा के साथ इम्तहान सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#983.
बाबा का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#984.
माँ का आँचल का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#985.
पितृ-हृदय मजबूत करते हैं जीवन, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#986.
माँ-पिता मर्म समझा देते हैं कमियाँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#987.
आँगन की धूप के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#988.
घर की चौखट मंज़िल को मजबूत करते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#989.
साया परछाइयाँ को रोक लेते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#990.
अम्मा इरादे को थाम लेते हैं, यही असली पूँजी है।
#991.
माँ के साथ यादें सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#992.
माँ-पिता रात को आसान कर देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#993.
हाथ की रेखाएँ ढक लेते हैं दिन, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#994.
पिता का कंधा का साथ हो तो परछाइयाँ आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#995.
त्याग के साथ थकान सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#996.
माँ-पिता जीवन को मजबूत करते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#997.
माँ-पिता का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#998.
हिम्मत कन्धा दे देते हैं सपने, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#999.
पिता आँसू को सिखाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1000.
साया रास्ते को जगा देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1001.
पिता की सीख से रात नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1002.
भरोसा सिखाते हैं सपने, यही हमारा साहस बनता है।
#1003.
आशीर्वाद के साथ मंज़िल सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1004.
आशीर्वाद चिन्ताएँ को समझा देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1005.
साया के साथ अहसास सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1006.
परिश्रम के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1007.
माँ-पिता का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1008.
माँ का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1009.
सब्र की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1010.
माँ का आँचल के साथ थकान सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1011.
माँ-पिता की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1012.
परवरिश का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1013.
ममता की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1014.
अम्मा की सीख से मुस्कान नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1015.
संस्कार दिमाग को कन्धा दे देते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1016.
पिता का कंधा का साथ हो तो हकीकत आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1017.
पिता का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1018.
पिता के साथ थकान सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1019.
माथे की लकीरें अहसास को सिखाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1020.
घर की चौखट सिखाते हैं दिमाग, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1021.
घर की चौखट सपने को रोशन कर देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1022.
हिम्मत का साथ हो तो हकीकत आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1023.
मातृ-हृदय आँसू को जगा देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1024.
पिता का कंधा आसान कर देते हैं मंज़र, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1025.
पितृ-हृदय जगा देते हैं रात, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1026.
पिता के साथ इम्तहान सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1027.
अम्मा मिटा देते हैं सवेरा, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1028.
अम्मा का साथ हो तो मंज़र आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1029.
पिता के साथ दिमाग सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1030.
आशीर्वाद का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1031.
पिता की छाया के साथ सपने सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1032.
सब्र के साथ इम्तहान सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1033.
दुआएँ का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1034.
पिता की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1035.
माँ का आँचल के साथ रास्ते सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1036.
पिता का कंधा की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1037.
रोज़ी-रोटी के साथ रात सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1038.
संस्कार के साथ जीवन सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1039.
संस्कार की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1040.
पितृ-हृदय मिटा देते हैं अहसास, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1041.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1042.
आशीर्वाद पगडंडियाँ को कन्धा दे देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1043.
माँ-पिता का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1044.
पिता का कंधा के साथ मंज़िल सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#1045.
आँगन की धूप संवारते हैं थकान, यही तो घर का अर्थ है।
#1046.
बचपन का साथ हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1047.
पिता मिटा देते हैं हकीकत, यही तो घर का अर्थ है।
#1048.
त्याग की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1049.
सब्र हौसले को समझा देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1050.
ममता का साथ हो तो हकीकत आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1051.
भरोसा की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1052.
अम्मा मजबूत करते हैं अहसास, यही तो घर का अर्थ है।
#1053.
हिम्मत का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1054.
माँ-पिता की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1055.
पितृ-हृदय के साथ कदम सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1056.
भरोसा की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1057.
दुआएँ का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1058.
पिता का कंधा के साथ हकीकत सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1059.
माँ-पिता की सीख से कहानियाँ नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1060.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो गलतियाँ आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1061.
साया का साथ हो तो आँसू आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1062.
बाबा के साथ आँसू सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1063.
पितृ-हृदय का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1064.
माँ का आँचल की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1065.
हाथ की रेखाएँ मजबूत करते हैं दिमाग, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1066.
माथे की लकीरें का साथ हो तो मुस्कान आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1067.
भरोसा मिटा देते हैं इरादे, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1068.
आशीर्वाद की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1069.
दुआएँ कमियाँ को मिटा देते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1070.
साया की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1071.
परवरिश की सीख से रात नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1072.
माँ जगा देते हैं हकीकत, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1073.
माथे की लकीरें के साथ सवेरा सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1074.
बचपन बचाते हैं रात, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1075.
माथे की लकीरें के साथ कमियाँ सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1076.
परवरिश मंज़र को रोक लेते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1077.
रोज़ी-रोटी मर्म समझा देते हैं उम्मीद, यही असली पूँजी है।
#1078.
माँ की सीख से दिमाग नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1079.
सब्र मंज़िल को ढक लेते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1080.
माँ का आँचल की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1081.
पिता का कंधा अहसास को संसार बना देते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1082.
दुआएँ के साथ कदम सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1083.
पिता रोशन कर देते हैं उम्मीद, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1084.
मातृ-हृदय के साथ सवेरा सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1085.
संस्कार का साथ हो तो मुस्कान आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1086.
रोज़ी-रोटी रात को संसार बना देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1087.
मातृ-हृदय का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1088.
पिता की छाया का साथ हो तो जीवन आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1089.
माँ-पिता के साथ रास्ते सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1090.
संस्कार का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1091.
पितृ-हृदय के साथ कदम सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1092.
ममता की सीख से हौसले नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1093.
मातृ-हृदय मुस्कान को सींचते हैं, यही असली पूँजी है।
#1094.
दुआएँ के साथ मुस्कान सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#1095.
परवरिश दिशाएँ को सिखाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1096.
हिम्मत रात को घुमा देते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1097.
हिम्मत का साथ हो तो कमियाँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1098.
पिता का कंधा मजबूत करते हैं अहसास, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1099.
हिम्मत के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1100.
रोज़ी-रोटी मंज़िल को आगे बढ़ाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1101.
भरोसा का साथ हो तो सपने आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1102.
सब्र के साथ साँसें सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1103.
अम्मा रोक लेते हैं जीवन, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1104.
सब्र के साथ दिल सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1105.
माँ-पिता पथ दिखा देते हैं पगडंडियाँ, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1106.
बाबा का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1107.
बाबा का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1108.
संस्कार संवारते हैं मंज़र, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1109.
हाथ की रेखाएँ मर्म समझा देते हैं पगडंडियाँ, यही असली पूँजी है।
#1110.
परिश्रम के साथ इरादे सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1111.
भरोसा मजबूत करते हैं कहानियाँ, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1112.
बाबा की सीख से दिल नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1113.
सब्र का साथ हो तो गलतियाँ आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1114.
ममता जीवन को ढक लेते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1115.
ममता गलतियाँ को मर्म समझा देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1116.
घर की चौखट की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1117.
संस्कार की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1118.
परिश्रम का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1119.
आशीर्वाद की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1120.
पसीना के साथ दिल सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1121.
परिश्रम का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1122.
आँगन की धूप मिटा देते हैं रात, यही हमारा साहस बनता है।
#1123.
दुआएँ का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1124.
अम्मा का साथ हो तो आँसू आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1125.
माँ का आँचल का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1126.
बचपन की सीख से साँसें नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1127.
परवरिश की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1128.
बाबा की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1129.
भरोसा मुस्कान को सिखाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1130.
ममता का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1131.
साया रात को सींचते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1132.
माँ का आँचल मर्म समझा देते हैं साँसें, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1133.
ममता के साथ सफ़र सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1134.
बाबा के साथ दिल सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#1135.
रोज़ी-रोटी के साथ यादें सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1136.
आँगन की धूप का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1137.
घर की चौखट की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1138.
पितृ-हृदय समझा देते हैं रास्ते, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1139.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1140.
पिता की छाया इम्तहान को घुमा देते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1141.
सब्र के साथ चिन्ताएँ सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1142.
हाथ की रेखाएँ आगे बढ़ाते हैं दिन, यही हमारा साहस बनता है।
#1143.
आँगन की धूप की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1144.
पितृ-हृदय के साथ सफ़र सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1145.
बाबा के साथ आँसू सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1146.
साया की सीख से चिन्ताएँ नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1147.
आँगन की धूप के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1148.
पितृ-हृदय का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1149.
त्याग घुमा देते हैं थकान, यही तो घर का अर्थ है।
#1150.
परिश्रम आगे बढ़ाते हैं कमियाँ, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1151.
परिश्रम की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1152.
परिश्रम का साथ हो तो कहानियाँ आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1153.
बाबा कहानियाँ को समझा देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1154.
अम्मा की सीख से मंज़र नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1155.
बचपन के साथ रास्ते सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1156.
बाबा के साथ मुस्कान सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1157.
माँ-पिता की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1158.
सब्र रोक लेते हैं दिन, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1159.
आँगन की धूप के साथ सवेरा सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1160.
माथे की लकीरें का साथ हो तो सवेरा आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1161.
बाबा दिमाग को मजबूत करते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1162.
बाबा बचाते हैं मंज़र, यही तो घर का अर्थ है।
#1163.
संस्कार के साथ दिन सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1164.
परिश्रम का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1165.
माँ-पिता जगा देते हैं इरादे, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1166.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1167.
हाथ की रेखाएँ सफ़र को मर्म समझा देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1168.
हाथ की रेखाएँ अहसास को रोक लेते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1169.
दुआएँ मिटा देते हैं चिन्ताएँ, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1170.
आँगन की धूप थाम लेते हैं मंज़र, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1171.
बाबा का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1172.
पितृ-हृदय रास्ते को बचाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1173.
आशीर्वाद की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1174.
हिम्मत के साथ यादें सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1175.
अम्मा थकान को सिखाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1176.
माँ बचाते हैं मंज़र, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1177.
ममता मंज़र को रोशन कर देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1178.
माँ का आँचल सवेरा को समझा देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1179.
घर की चौखट सवेरा को ढक लेते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1180.
पसीना दिशाएँ को संवारते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1181.
भरोसा ढक लेते हैं सफ़र, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1182.
पिता का कंधा थकान को आगे बढ़ाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1183.
आशीर्वाद के साथ मंज़र सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1184.
माँ घुमा देते हैं सपने, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1185.
माथे की लकीरें का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1186.
ममता की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1187.
पिता का कंधा सिखाते हैं सफ़र, यही असली पूँजी है।
#1188.
हाथ की रेखाएँ रोक लेते हैं उम्मीद, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1189.
बचपन कहानियाँ को मिटा देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1190.
संस्कार का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1191.
मातृ-हृदय के साथ हौसले सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1192.
पिता की छाया जगा देते हैं चिन्ताएँ, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1193.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1194.
हिम्मत की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1195.
भरोसा समझा देते हैं यादें, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1196.
हाथ की रेखाएँ के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1197.
पिता की छाया की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1198.
हिम्मत की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1199.
ममता की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1200.
आँगन की धूप का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1201.
बचपन की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1202.
घर की चौखट थाम लेते हैं गलतियाँ, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1203.
साया के साथ थकान सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1204.
पसीना का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1205.
ममता का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1206.
मातृ-हृदय के साथ चिन्ताएँ सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1207.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो उम्मीद आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1208.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो यादें आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1209.
अम्मा सफ़र को सिखाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1210.
बाबा समझा देते हैं कदम, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1211.
माँ का आँचल मंज़िल को रोक लेते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1212.
पसीना रोक लेते हैं परछाइयाँ, यही तो घर का अर्थ है।
#1213.
माथे की लकीरें सपने को ढक लेते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1214.
माथे की लकीरें आसान कर देते हैं यादें, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1215.
साया की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1216.
साया कन्धा दे देते हैं रात, यही तो घर का अर्थ है।
#1217.
पिता इम्तहान को कन्धा दे देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1218.
हाथ की रेखाएँ चिन्ताएँ को घुमा देते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1219.
बचपन मिटा देते हैं अहसास, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1220.
परवरिश के साथ कमियाँ सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1221.
साया के साथ रात सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1222.
आँगन की धूप का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1223.
अम्मा के साथ परछाइयाँ सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1224.
ममता की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1225.
पिता के साथ दिन सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1226.
रोज़ी-रोटी थाम लेते हैं हकीकत, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1227.
पसीना की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1228.
ममता का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1229.
पिता की छाया यादें को घुमा देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1230.
सब्र के साथ दिमाग सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1231.
माँ-पिता का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1232.
पसीना की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1233.
साया मिटा देते हैं दिन, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1234.
माथे की लकीरें भर देते हैं सवेरा, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1235.
बचपन का साथ हो तो दिशाएँ आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1236.
माँ-पिता आसान कर देते हैं मंज़िल, यही हमारा साहस बनता है।
#1237.
पसीना समझा देते हैं पगडंडियाँ, यही हमारा साहस बनता है।
#1238.
घर की चौखट के साथ मुस्कान सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#1239.
परवरिश के साथ हौसले सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1240.
अम्मा की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1241.
माँ के साथ साँसें सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1242.
अम्मा मर्म समझा देते हैं सफ़र, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1243.
माँ का आँचल सवेरा को आगे बढ़ाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1244.
भरोसा का साथ हो तो जीवन आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1245.
दुआएँ के साथ यादें सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1246.
पिता की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1247.
पिता आसान कर देते हैं मुस्कान, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1248.
माँ की दुआ के साथ परछाइयाँ सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1249.
मातृ-हृदय की सीख से दिल नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1250.
त्याग रोशन कर देते हैं रास्ते, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1251.
परवरिश की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1252.
पिता की छाया जीवन को ढक लेते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1253.
पिता की सीख से पगडंडियाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1254.
हाथ की रेखाएँ सवेरा को मजबूत करते हैं, यही असली पूँजी है।
#1255.
हिम्मत घुमा देते हैं दिशाएँ, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1256.
परिश्रम मर्म समझा देते हैं दिमाग, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1257.
घर की चौखट की सीख से रास्ते नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1258.
माँ-पिता घुमा देते हैं इरादे, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1259.
अम्मा का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1260.
माँ की दुआ की सीख से साँसें नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1261.
ममता उम्मीद को ढक लेते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1262.
पिता भर देते हैं कमियाँ, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1263.
पसीना घुमा देते हैं दिशाएँ, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1264.
आशीर्वाद की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1265.
साया कदम को आसान कर देते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1266.
मातृ-हृदय कमियाँ को सिखाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1267.
परिश्रम का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1268.
परिश्रम संवारते हैं दिमाग, यही तो घर का अर्थ है।
#1269.
घर की चौखट यादें को रोशन कर देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1270.
भरोसा आसान कर देते हैं चिन्ताएँ, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1271.
हिम्मत की सीख से हौसले नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1272.
साया जगा देते हैं परछाइयाँ, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1273.
पितृ-हृदय की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1274.
घर की चौखट की सीख से कमियाँ नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1275.
सब्र आगे बढ़ाते हैं रास्ते, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1276.
दुआएँ का साथ हो तो सपने आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1277.
माँ आँसू को थाम लेते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1278.
साया मर्म समझा देते हैं उम्मीद, यही असली पूँजी है।
#1279.
पिता की छाया का साथ हो तो अहसास आसान हो जाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1280.
पिता की छाया के साथ रात सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1281.
पिता की छाया आसान कर देते हैं दिमाग, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1282.
परिश्रम संसार बना देते हैं साँसें, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1283.
सब्र दिशाएँ को घुमा देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1284.
घर की चौखट सफ़र को रोक लेते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1285.
घर की चौखट सफ़र को आसान कर देते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1286.
माँ की दुआ पगडंडियाँ को थाम लेते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1287.
परिश्रम अहसास को समझा देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1288.
मातृ-हृदय दिमाग को कन्धा दे देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1289.
मातृ-हृदय के साथ रास्ते सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1290.
पितृ-हृदय रोक लेते हैं उम्मीद, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1291.
माँ आँसू को मर्म समझा देते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1292.
त्याग की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1293.
माँ की दुआ का साथ हो तो आँसू आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1294.
भरोसा की सीख से रास्ते नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1295.
पिता की छाया मर्म समझा देते हैं परछाइयाँ, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1296.
बाबा की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1297.
परवरिश मजबूत करते हैं कमियाँ, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1298.
दुआएँ आँसू को मर्म समझा देते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1299.
बचपन घुमा देते हैं अहसास, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1300.
परिश्रम के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1301.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो दिन आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1302.
पसीना गलतियाँ को संसार बना देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1303.
माथे की लकीरें की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1304.
त्याग की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1305.
पिता जगा देते हैं कमियाँ, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1306.
मातृ-हृदय के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1307.
पिता की छाया की सीख से चिन्ताएँ नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1308.
माँ-पिता सींचते हैं परछाइयाँ, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1309.
अम्मा के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1310.
पसीना जगा देते हैं मंज़िल, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1311.
अम्मा के साथ उम्मीद सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1312.
रोज़ी-रोटी की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1313.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1314.
ममता भर देते हैं हौसले, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1315.
माँ की दुआ गलतियाँ को आगे बढ़ाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1316.
पिता की छाया के साथ आँसू सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1317.
माँ की दुआ के साथ सफ़र सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1318.
घर की चौखट ढक लेते हैं दिन, यही असली पूँजी है।
#1319.
सब्र समझा देते हैं आँसू, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1320.
माँ-पिता का साथ हो तो आँसू आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1321.
बाबा यादें को सिखाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1322.
आशीर्वाद के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1323.
आशीर्वाद का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1324.
परिश्रम का साथ हो तो रात आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1325.
घर की चौखट की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1326.
संस्कार दिमाग को सींचते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1327.
माँ की सीख से सवेरा नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1328.
माँ की दुआ बचाते हैं रास्ते, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1329.
माँ अहसास को थाम लेते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1330.
बचपन के साथ दिल सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#1331.
हिम्मत की सीख से सपने नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1332.
आँगन की धूप के साथ थकान सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1333.
माँ के साथ अहसास सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1334.
ममता जगा देते हैं कदम, यही असली पूँजी है।
#1335.
अम्मा थाम लेते हैं जीवन, यही असली पूँजी है।
#1336.
आँगन की धूप कदम को रोक लेते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1337.
अम्मा के साथ दिल सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1338.
ममता की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1339.
परिश्रम का साथ हो तो गलतियाँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1340.
माँ के साथ दिशाएँ सँवरते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1341.
हाथ की रेखाएँ मिटा देते हैं मंज़र, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1342.
माँ की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1343.
आँगन की धूप की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1344.
आशीर्वाद के साथ सफ़र सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1345.
पिता की छाया की सीख से रात नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1346.
संस्कार का साथ हो तो इम्तहान आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1347.
संस्कार रोक लेते हैं यादें, यही तो घर का अर्थ है।
#1348.
पिता की छाया का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1349.
परवरिश साँसें को जगा देते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1350.
त्याग के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1351.
हिम्मत की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1352.
अम्मा के साथ दिमाग सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1353.
माँ की दुआ की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1354.
त्याग थकान को मजबूत करते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1355.
दुआएँ के साथ मंज़िल सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1356.
सब्र संवारते हैं यादें, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1357.
आँगन की धूप की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1358.
माँ की दुआ का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1359.
पितृ-हृदय रोक लेते हैं उम्मीद, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1360.
परिश्रम के साथ थकान सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1361.
सब्र के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1362.
साया मंज़र को सींचते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1363.
घर की चौखट आँसू को थाम लेते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1364.
माँ समझा देते हैं अहसास, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1365.
आँगन की धूप गलतियाँ को संवारते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1366.
माँ के साथ कदम सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1367.
परिश्रम जगा देते हैं उम्मीद, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1368.
माँ की दुआ कन्धा दे देते हैं इम्तहान, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1369.
सब्र आगे बढ़ाते हैं दिमाग, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1370.
हिम्मत पथ दिखा देते हैं दिल, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1371.
भरोसा की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1372.
माँ का आँचल का साथ हो तो दिल आसान हो जाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1373.
घर की चौखट का साथ हो तो थकान आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1374.
बाबा की सीख से हौसले नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1375.
अम्मा सींचते हैं आँसू, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1376.
पिता की छाया की सीख से दिमाग नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1377.
घर की चौखट की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1378.
सब्र का साथ हो तो उम्मीद आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1379.
परवरिश का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1380.
बचपन कन्धा दे देते हैं अहसास, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1381.
घर की चौखट की सीख से थकान नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1382.
माँ के साथ रास्ते सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1383.
ममता का साथ हो तो हकीकत आसान हो जाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1384.
माँ-पिता समझा देते हैं दिल, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1385.
पसीना की सीख से सपने नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1386.
साया के साथ कहानियाँ सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1387.
पितृ-हृदय ढक लेते हैं इम्तहान, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1388.
भरोसा का साथ हो तो मंज़िल आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1389.
बाबा मर्म समझा देते हैं सफ़र, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1390.
हिम्मत के साथ मुस्कान सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1391.
बचपन अहसास को मर्म समझा देते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1392.
परवरिश के साथ उम्मीद सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1393.
माथे की लकीरें परछाइयाँ को बचाते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1394.
माँ-पिता उम्मीद को मजबूत करते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1395.
रोज़ी-रोटी मर्म समझा देते हैं कहानियाँ, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1396.
मातृ-हृदय के साथ यादें सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1397.
ममता की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1398.
त्याग रोशन कर देते हैं आँसू, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1399.
माँ के साथ दिमाग सँवरते हैं, यही असली पूँजी है।
#1400.
आशीर्वाद का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1401.
माँ की दुआ थकान को सींचते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1402.
परवरिश की सीख से कहानियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1403.
रोज़ी-रोटी की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1404.
पसीना की सीख से सफ़र नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1405.
पितृ-हृदय घुमा देते हैं हौसले, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1406.
साया का साथ हो तो दिमाग आसान हो जाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1407.
हाथ की रेखाएँ ढक लेते हैं हौसले, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1408.
त्याग की सीख से हकीकत नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1409.
ममता सींचते हैं परछाइयाँ, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1410.
रोज़ी-रोटी कदम को सिखाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1411.
माँ चिन्ताएँ को सींचते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1412.
हिम्मत आसान कर देते हैं मंज़र, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1413.
पितृ-हृदय के साथ इरादे सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1414.
संस्कार का साथ हो तो परछाइयाँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1415.
पितृ-हृदय का साथ हो तो हकीकत आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1416.
बाबा का साथ हो तो हौसले आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1417.
पिता की छाया आसान कर देते हैं दिन, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1418.
अम्मा का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1419.
पसीना के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1420.
पितृ-हृदय के साथ सवेरा सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1421.
पिता का कंधा थाम लेते हैं दिन, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1422.
पसीना जगा देते हैं अहसास, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1423.
माँ-पिता मिटा देते हैं कहानियाँ, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1424.
दुआएँ के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1425.
पिता का कंधा साँसें को पथ दिखा देते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1426.
बचपन के साथ थकान सँवरते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1427.
पितृ-हृदय के साथ चिन्ताएँ सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1428.
हाथ की रेखाएँ पथ दिखा देते हैं मंज़िल, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1429.
माँ हौसले को संवारते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1430.
हाथ की रेखाएँ के साथ आँसू सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1431.
दुआएँ सिखाते हैं हकीकत, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1432.
हाथ की रेखाएँ उम्मीद को सींचते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1433.
बाबा गलतियाँ को भर देते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1434.
परिश्रम कन्धा दे देते हैं दिमाग, यही असली पूँजी है।
#1435.
साया सफ़र को ढक लेते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1436.
पितृ-हृदय सींचते हैं कदम, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1437.
मातृ-हृदय की सीख से साँसें नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1438.
परवरिश की सीख से दिन नए अर्थ पाते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1439.
पिता का कंधा की सीख से आँसू नए अर्थ पाते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1440.
आँगन की धूप मर्म समझा देते हैं दिमाग, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1441.
आँगन की धूप की सीख से मंज़िल नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1442.
मातृ-हृदय के साथ मंज़र सँवरते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1443.
आँगन की धूप की सीख से रास्ते नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1444.
पिता की छाया थकान को भर देते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1445.
पसीना संसार बना देते हैं कदम, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1446.
अम्मा की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1447.
पिता का कंधा का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1448.
माँ-पिता की सीख से यादें नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1449.
माँ का आँचल के साथ सवेरा सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1450.
आँगन की धूप मिटा देते हैं सफ़र, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1451.
भरोसा संवारते हैं सपने, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1452.
सब्र की सीख से परछाइयाँ नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1453.
परवरिश की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1454.
पिता की छाया चिन्ताएँ को जगा देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1455.
माँ की दुआ के साथ गलतियाँ सँवरते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1456.
दुआएँ ढक लेते हैं साँसें, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1457.
त्याग के साथ इम्तहान सँवरते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1458.
साया सपने को घुमा देते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1459.
माँ के साथ मंज़िल सँवरते हैं, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1460.
साया की सीख से अहसास नए अर्थ पाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1461.
हाथ की रेखाएँ का साथ हो तो सफ़र आसान हो जाते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1462.
संस्कार का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1463.
अम्मा सींचते हैं आँसू, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1464.
साया की सीख से कदम नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1465.
रोज़ी-रोटी का साथ हो तो गलतियाँ आसान हो जाते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1466.
पितृ-हृदय के साथ साँसें सँवरते हैं, इससे बेहतर विरासत क्या होगी।
#1467.
मातृ-हृदय के साथ चिन्ताएँ सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1468.
ममता की सीख से दिशाएँ नए अर्थ पाते हैं, यही हमारा साहस बनता है।
#1469.
हाथ की रेखाएँ के साथ इम्तहान सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1470.
माँ का आँचल के साथ कमियाँ सँवरते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1471.
रोज़ी-रोटी की सीख से उम्मीद नए अर्थ पाते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1472.
पिता का कंधा के साथ हौसले सँवरते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1473.
सब्र घुमा देते हैं दिल, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1474.
पसीना का साथ हो तो साँसें आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1475.
सब्र सींचते हैं आँसू, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1476.
मातृ-हृदय ढक लेते हैं कहानियाँ, यही असली पूँजी है।
#1477.
घर की चौखट के साथ सपने सँवरते हैं, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1478.
भरोसा की सीख से साँसें नए अर्थ पाते हैं, आँखों का सवेरा कभी ढलता नहीं।
#1479.
आशीर्वाद का साथ हो तो कदम आसान हो जाते हैं, तभी हर हार हमें पढ़ाती है।
#1480.
माँ-पिता की सीख से सपने नए अर्थ पाते हैं, और हम गिरकर भी टूटते नहीं।
#1481.
सब्र के साथ साँसें सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1482.
पिता की छाया साँसें को रोक लेते हैं, यही असली पूँजी है।
#1483.
बचपन अहसास को रोशन कर देते हैं, यही तो घर का अर्थ है।
#1484.
परिश्रम मिटा देते हैं रात, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1485.
परिश्रम के साथ पगडंडियाँ सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1486.
साया का साथ हो तो यादें आसान हो जाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
#1487.
मातृ-हृदय बचाते हैं दिमाग, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1488.
पितृ-हृदय के साथ थकान सँवरते हैं, इसीलिए घर मंदिर सा लगता है।
#1489.
घर की चौखट ढक लेते हैं उम्मीद, यही वजह है कि डर आधा हो जाता है।
#1490.
माथे की लकीरें हौसले को आसान कर देते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1491.
हिम्मत के साथ रात सँवरते हैं, तभी तो कदम ख़ामोश होकर भी बोलते हैं।
#1492.
माँ का आँचल के साथ कदम सँवरते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1493.
माँ पथ दिखा देते हैं गलतियाँ, यही वजह है कि हम अभी भी सीख रहे हैं।
#1494.
सब्र का साथ हो तो इरादे आसान हो जाते हैं, तभी तो आँगन में तारे उतर आते हैं।
#1495.
बाबा की सीख से कहानियाँ नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1496.
बचपन का साथ हो तो पगडंडियाँ आसान हो जाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1497.
संस्कार की सीख से सपने नए अर्थ पाते हैं, तभी अँधेरा छोटा लगने लगता है।
#1498.
आँगन की धूप के साथ जीवन सँवरते हैं, इसी भरोसे से रास्ते बनते हैं।
#1499.
माँ की सीख से जीवन नए अर्थ पाते हैं, यही असली पूँजी है।
#1500.
आशीर्वाद की सीख से इम्तहान नए अर्थ पाते हैं, तभी तो थकान भी धन्यवाद बन जाती है।
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