ताज़ा शायरी – मौलिक
ताज़ा शायरी – मौलिक, कॉपीराइट-फ्री (Blogger के लिए HTML)
प्रकाशित: 14 August 2025 • लेखक: आप (कॉपीराइट-फ्री / CC0)
टैग: दिल
तुम्हारी याद ने जो दीप जलाए रात भर,
नींद आई भी तो ख़्वाबों में थे तुम बार-बार।
टैग: मोहब्बत
तेरे आने से रूह को पंख मिल गए,
वरना साँसों के सफ़र में धूल ही धूल थी।
टैग: याद
दीवार-ए-वक़्त पर नाम तुम्हारा लिख दिया,
बरसात आई तो दिल ने उसे फिर पढ़ लिया।
टैग: तन्हाई
भीड़ में हूँ मगर आवाज़ बस मेरी है,
तुम थे तो शहर था, अब तो सन्नाटा ही है।
टैग: वफ़ा
नक़्श पाँव का तेरी राह में रहने दिया,
ताकि लौट के कभी आए तो पहचान लो।
टैग: ख़्वाब
मैंने चाँद से कहा, तेरी खबर लाए कोई,
वो मुस्कुरा के बोला—खिड़कियाँ खुली रखो।
टैग: इश्क़
तुम्हारी आँख का काजल भी मेरे हक़ में बोले,
कलम से पहले दिल ने इकरार लिख दिया।
टैग: सफ़र
रास्ते पूछते हैं मंज़िलें किस तरफ़ जाएँ,
तेरा हाँ कह देना नक़्शा बदल देता है।
टैग: क़िस्मत
जो पतंग-सा था दिल, आसमाँ तक जा पहुँचा,
तेरी उँगलियों ने जब डोर थाम ली।
टैग: बारिश
बूँदें गिरें तो लगे जैसे दुआ होती हो,
तेरा नाम लिए हैं बादल भी झुके-झुके।
टैग: चाँद
चाँद ने आईना देखा तो शरम-सा आया,
तेरे चेहरे की तरह लगने लगा आज रात।
टैग: रात
रात भर रोशनी रखी तेरी यादों ने,
सुबह हुई तो मेरे कमरे में तारा निकला।
टैग: उम्मीद
रेत पर भी कश्ती उतार दी मैंने,
तुमने बस इतना कहा—किनारा होगा।
टैग: दर्द
जो तीर लगना था, वो फूल बन के लगा,
तुम मुस्कुराए तो ज़ख्म भी महक उठा।
टैग: ग़ज़ल
हर शेर में तेरा ही असर उतर आया,
काग़ज़ सूना था, तेरा नाम लिख गया।
टैग: सवेरा
सूरज उगा तो रंग बदला मेरी खिड़की का,
तुम्हारा ख़त भी सुनहरी दिखाई दिया।
टैग: रूह
धड़कनों ने अज़ान दी तेरे आने की,
मेरी रूह ने नमाज़-ए-शुक्र अदा कर दी।
टैग: वक़्त
घड़ी रुक जाए तो रुक जाए जहाना़ मेरा,
तेरे संग बैठकर बातें मुकम्मल हों।
टैग: चाय
एक कप चाय में तुमको घोल कर पी लिया,
अब हर क़तरा मेरी रगों में मोहब्बत है।
टैग: इक़रार
सादगी में जो लिपटा है तेरा सारा अदब,
मैंने उस लम्हे को उम्र भर मान लिया।
टैग: रूहानी
तुम्हारे साथ चलूँ तो रास्ते बोलेंगे,
ख़ामोशी भी मेरे लिए तराना होगी।
टैग: ख़त
ख़त में मैंने जो बिंदियाँ लगाईं थीं,
हर नुक्ते पर तेरी याद ठहर जाती है।
टैग: दुआ
मेरी हथेली पे किस्मत की लकीरें कम थीं,
तुमने दुआ में जो थामा, मुकम्मल हो गईं।
टैग: मंज़िल
मैंने मंज़िल से कहा, ठहर ज़रा दूर तक,
मेरे हमसफ़र के क़दमों की आहट आए।
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