Shayari Collection in Hindi – मोहब्बत, दर्द, दोस्ती, ज़िंदगी और इंसानियत शायरी

माँ की दुआओं में छुपा हर सवेरा है
उसने मेरे कल को सँवार दिया, आज को मुस्कान दी।
मेरी हर जीत के पीछे माँ का बसेरा है
मेरी राहों में उजाला और दिल को पहचान दी।
माँ के आँचल में दुनिया से ज़्यादा सुकून है
वो मेरी पहली जन्नत है, मेरी आख़िरी मंज़िल भी।
थक जाऊँ तो भी माँ कह दूँ—सब कुछ जुनून है
उसके बिना हर तर्क अधूरा, हर हासिल भी।
माँ की मुस्कान मेरी सबसे बड़ी जीत है
थामे जो उँगली मेरी, गिरने न दिया कभी।
उसके बिना हर ख़ुशी थोड़ी अधूरी रीत है
रोज़ मरहम बनकर डर को दूर करती है
जिसकी दुआओं की छत ने हर तूफ़ान मोड़ा।
माँ मेरी साँसों में उजाला भरती है
मैं भटका जहाँ-जहाँ, उसने वहीं हाथ जोड़ा।
उसके कदमों में जन्नत का रास्ता मिलता है
उसके चरणों में मिलती है मेरी सारी रौशनी।
माँ का नाम लेते ही दिल सँभलता है
नाम लेते ही खिल उठती है मेरी सारी ख़ुशबू।
माँ की रसोई में प्यार का स्वाद मिलता है
चूल्हे की आँच में उसने सपनों को पकाया।
भूख से पहले नेह का संवाद मिलता है
कौर-कौर में उसने जीवन का स्वाद सिखाया।
मेरे बचपन की हर गलती उसने सीने से लगा ली
मेरी गलतियों को उसने प्यार से सहलाया।
डाँटा भी तो बस इतना कि हिम्मत जगा दी
दो आँसू पोंछ, फिर माथे को चूमा और हँसाया।
माँ की नज़रों में सब से सच्चा आईना हूँ
सच और सादगी उसने बिना किताबों के पढ़ाई।
उसके ईश्वर में मैं ही उसका नगीना हूँ
जीत-हार से ऊपर इन्सानियत की लिखाई।
माँ की लोरी अब भी रातों को सुलाती है
नींद मेरी उसकी लोरी की गवाही देती है।
यादों की खिड़की से चाँदनी बन आती है
रात भर चाँद-सितारे मेरी पहरेदारी करते हैं।
उसकी हथेली पर किस्मत की लकीरें बसी हैं
मेरे लिए उसने दुनिया से सौदा नहीं किया।
मेरी राहों में उसकी दुआएँ हँसी हैं
अपनी नींद, अपने सपने तक भी मौक़ूफ किया।
माँ के क़दमों की आहट भी तसब्बुर सिखाती है
सबक़ सिखाए ऐसे कि हक़ीक़त बन गए।
ख़ामोशी में रहकर भी जीना सिखाती है
शब्द बोले कम, असर मगर सदियों तक रह गया।
माँ का घर आँगन जैसा, मन का मंदिर है
उसके नाम में छिपा मेरा पूरा आसमान।
उसके होने से हर मौसम सुगंधित है
माँ कह दूँ तो मिट जाए हर हैरान-परेशान।
जब भी डरता हूँ, माँ का नाम ले लेता हूँ
कदम-कदम पर उसने मेरी हिम्मत बढ़ा दी।
शेर बनकर हर मुश्किल से खेल लेता हूँ
हार को भी जीते जैसा मायने सिखा दी।
माँ की उँगली पकड़े दुनिया पार कर ली
पलक झपकते आँसू मेरे अपने ले ली।
छोटी सी हँसी में बड़ी फिक़्र उतार दी
दर्द के हिस्से का रोना भी ख़ुद पर ले ली।
माँ के माथे की बिंदी में मेरी सुबह बसती है
सहलाती रही जब तक मैं मुस्कुराने लगा।
उसके आँचल की छाँव में मेरी दुपहरी हँसती है
फिर चुपचाप ख़ुद से ही समझाने लगी।
माँ के बिना घर भी बस एक मकान लगता है
खाली घर उसके बिना सन्नाटों का मौसम है।
उसके आने से ही हर कोना जान लगता है
वो आए तो हर कोना फूलों का आलम है।
माँ का धैर्य पहाड़ है, समंदर सी गहराई
धैर्य उसका पहाड़, चुप्पी दरिया जैसी।
उसने हर आँधी में भी नाव मेरी तैराई
मेरे लिए उसने दुनिया रख दी वैसी की वैसी।
माँ की झिड़की भी मीठी, जैसे मिश्री घुल जाए
डाँट में भी छुपा था बस मेरा कल सँवारना।
दो पल खफा हो, फिर बाहों में सब भूल जाए
आज भी उसकी झिड़की लगे मीठा सा दुलारना।
माँ की आँखों में मेरी थकन पिघल जाती है
नज़र के एक इशारे से मेरी क़िस्मत बदल दे।
एक नज़र से पूरी दुनिया बदल जाती है
झट से मेरे मन के सारे बादल उखाड़ दे।
माँ मेरे अंदर की रोशनी का नाम है
उसकी रगों में बहती रोशनी मेरी पहचान।
हर मुश्किल में जो साथ दे वो अंजाम है
वो मुझे देख हज़ार बार करे क़ुर्बान।
माँ की पुकार में ईश्वर की आहट सुनती है
आसमान से बरसती उसकी यादें मोतियों जैसी।
रूह मेरी उसकी दहलीज़ पर झुकती है
रूह को भिगो जाएं, बेहद खामोश, रेशमी जैसी।
माँ की यादें बारिश बनकर बरसती हैं
उसकी भरोसे की पूँजी से मैं अमीर हुआ।
सूखी रूह पर चुपचाप मोती सरसती हैं
दो कदम चला, फिर जीत का सफ़ीर हुआ।
माँ का भरोसा मेरी सबसे बड़ी पूँजी है
मेहनत की रसोई में उसने ईमान पकाया।
उसके शब्दों में ही ज़िंदगी की गुंजाइश है
मेरे हाथों में उसने हौसला सजाया।
माँ की थाली में मेहनत का स्वाद मिलता है
इबादत उसकी ख़ामोश, असर उसका ऊँचा।
पसीने की खुशबू में ईमान जगमगता है
मैं गिरा जहाँ-जहाँ, उसने हाथ मुझे बूचा।
माँ की उफान भरी चुप्पी भी इबादत सी लगती है
सीखा उसने मुझे हालात से लड़ना।
वो रोए तो दुनिया के रंगीनियाँ फीकी लगती हैं
जीवन का असली मतलब है थोड़ा-थोड़ा बढ़ना।
माँ से बड़ी कोई टीचर नहीं दुनिया में
त्याग उसका सितारों से भी ऊपर निकला।
उसने जीना सिखाया सादगी की जमीं में
मेरे लिए उसने अपना सपना भी चुपचाप रखा।
माँ का त्याग सितारों से भी ऊँचा है
दोस्त वो पहली, आख़िरी, सबसे सच्ची।
उसकी झील सी आँखों में सारा सवेरा है
दुनिया सारी लगे उसके बिन कुछ कच्ची।
माँ मेरी पहली दोस्त, आख़िरी सहेली
कंधे पर उसके रखकर सर, आँसू सूख गए।
उसके संग हर दर्द लगे रुई की रजाई सी
वहीं से फिर रास्ते मेरे नए-सूझ गए।
माँ का कंधा हर हार का आख़िरी किनारा
नर्मी में उसकी छुपी फ़ौलादी मज़बूती।
वहीं से शुरू होती है जीत का इश्तिहार
राख से रोशनी, डर से निकली आवारगी।
माँ की नर्मी में छिपी चट्टान सी हिम्मत
सपनों में मेरे कल की नींव रखी उसने।
वो ख़ुद जली, मुझे दे दी रोशनी की कशिश
ख़ामोशी में उम्मीद की घंटी बजी उसने।
माँ के सपनों में मेरा भविष्य चमकता
धूप में छाता, सर्दी में रज़ाई बन जाती।
उसकी ख़ामोशी में भी हौसला दमकता
बारिश में दुपट्टा बनकर मुझे बचाती।
माँ की परछाईं धूप में छाता बन जाती
मुस्कान में उसकी थकावट घुलकर सो जाती।
बारिश में दुपट्टा, सर्दी में रज़ाई
मेरी हर हार को वो जीता सा बना जाती।
माँ की थकान भी मुस्कान में ढल जाती
पाँव उसके आते तो दीवारें मुस्कातीं।
मैं जीतूँ या हारूँ, उसकी दुआ साथ आती
खिड़कियाँ खोलें, चिड़ियाँ गीत सुनातीं।
माँ के पाँव में धरती सिहर सी जाती
त्योहार सबसे बड़ा उसका होना भर है।
घर की दीवारें भी उसके संग मुस्काती
मैं हूँ क्योंकि वो मेरे संग हर पहर है।
माँ का होना ही सबसे बड़ा त्योहार
छाती से लगा ले तो सारे डर खो जाएँ।
दिन हो या रात, वही मेरा संसार
दर्द भी चुपचाप अलविदा बोल जाएँ।
माँ की गोद में हर डर सो जाता
हथेलियों का स्पर्श हो तो मिल जाए आसमान।
दर्द भी हँसकर अलविदा हो जाता
छाया में उसकी मिलता है मेरा नया जहान।
माँ के हाथों का स्पर्श है वरदान
माँगता हूँ उससे बस एक हँसी की दुआ।
उसकी छाया में मिलता है आसमान
बाक़ी सब तो मिल जाता है समय के रू-ब-रू।
माँ से माँगूँ तो बस उसकी मुस्कान
उसकी धड़कन में मेरी हर रग गूँजती।
पिता की छाया में धूप भी सुकून देती है
मेरी छोटी जीतों में भी पर्व रचा करते थे।
मेरे कंधों पर सपनों की निशानी वही लेती है
अपने सपनों को मेरे सपनों में सजा करते थे।
उसके पसीने में घर का उजाला जलता है
मेहनत की लौ से ही उन्होंने दीप जला रखे।
पिता का हाथ थामे डर भी पिघलता है
एक मुस्कान में मेरी सारी थकान बहा रखे।
पिता की खामोशी में पहाड़ों सी कहानी है
जाने कितनी रातें उन्होंने चुपचाप काटीं।
वो कम बोलते हैं, मगर आँखों में रवानी है
सुबह मेरे लिए नई उम्मीदें फिर बाँटीं।
कंधों पर उठाए उसने मेरी सारी नादानियाँ
मेरे बोझ को उन्होंने अपने कंधों पर उतारा।
हर ठोकर पर सीखा दी उसने नई समझदारियाँ
मुझे दुनिया से लड़ना, मगर दिल से न हारना सिखाया।
वो थक गए, मगर मुस्कान कभी थकी नहीं
वो ढाल बने, मैं डरते-डरते आगे बढ़ता।
मेरे लिए उनकी उम्मीदें भी झुकी नहीं
उनकी नज़र का इशारा था—मत रुकना, बस चलता।
पिता की डाँट में छुपा था गहरा सा लाड
लाड में लिपटी उनकी कड़वी-मीठी सीख।
आज समझ आया—वही था सबसे बड़ा आशीर्वाद
आज उन्हीं बातों में मिलता जीवन का लेख।
उसके कदमों की चाप से घर को दिशा मिलती
उनके कदम बढ़े तो घर में उजाले बढ़े।
हर सुबह उनकी दुआ से मंज़िलों की रौशनी खिलती
उनके इशारों से मेरे सपने पंख लगें।
पिता की जेब में खुद की नहीं, मेरी ख्वाहिशें थीं
मेरे लिए उन्होंने अपनी चाय ठंडी की।
वो खुद भूखे, पर मेरी थाली में भरपूर रोटियाँ थीं
मेरे लिए अपनी ज़रूरतें भी कम कीं।
वो छाते बने, आँधी-पानी में कंधा दिया
आँधी हो या बारिश, हमेशा साथ रहे।
मेरी हारों को उन्होंने ही जीत का अर्थ दिया
मेरे टूटे मन के लिए वो ही कंधा बने।
पिता के माथे की लकीरें मेरी किताब थीं
माथे की हर लकीर किसी फ़ैसले की कहानी।
हर शिकन में छिपी मेरे कल की इबारत थीं
मेरे कल के लिए उन्होंने अपनी नींदें हक़ानी।
वो चट्टान बने, पर दिल से रुई से भी नर्म
दिल फ़ौलाद, मगर आँखें पानी-पानी।
मेरे आँसुओं पर लगे उनके हौसले के मलहम
मेरी पीड़ा पर उनकी धड़कन होती दीवानी।
मेरे सपनों की पहली सीढ़ी वही बने
उँगली पकड़ के मैंने साहस सीखा।
हर ठंडे मौसम में धूप बनकर वहीं तने
खुद पर भरोसा रखना, ये कला सीखा।
पिता की उँगली पकड़ मैंने दुनिया नाप ली
देना बिना शोर के, यही उनका तरीका।
उनकी हिम्मत से अपने अंदर आग आप ली
औरों के लिए जीना, ये भी उन्होंने सीखा।
उन्होंने खामोशी से देना सिखा दिया
मेरे समय की घड़ी का पहरा वही देते।
बेहतर इन्सान बनना मेरी थाती बना दिया
हर देर पर धैर्य के मोती मुझे देते।
पिता की घड़ी में मेरे समय की चाल थी
रातों की रोटियाँ मेरी किताब में जुड़तीं।
मेरी हर देरी पर उनकी धड़कन बेहाल थी
सुबह की हँसी में उनकी थकानें घुलतीं।
वो देर रात तक मेरे कल का पहरा देते थे
मैं गिरता तो पहले उनकी आँखें भर आतीं।
सुबह होते ही फिर नई उम्मीदें बोते थे
मेरे उठते ही वो सबसे पहले मुस्कातीं।
मेरे गिरने से पहले ही वो गिर जाते थे
थकान उतर जाती उनके एक शब्द से।
मेरी तकलीफ से ज़्यादा वो तड़प जाते थे
मेरी राहें आसान हो जातीं उनके साथ से।
पिता का कंधा मेरी हर थकान का ठिकाना
कहानियों के हीरो नहीं, मगर असल के।
उनके साथ कदम बढ़े तो मुश्किल भी बहाना
मेरी रोज़ की लड़ाई के वो असली पहल।
वो नायक नहीं बने, पर हीरो वही हैं
मुझसे पहले उन्होंने मेरा कल सजाया।
हमारी रोज़मर्रा की कहानी के धुरी वही हैं
अपने आज को मेरे आने वाले कल में समाया।
उन्होंने अपनों से पहले हमें तरजीह दी
ताली उनकी सबसे प्यारी धुन लगती।
मेरे कल के लिए अपनी खुशियाँ तक गिरवी दी
डाँट उनकी भी संजीवनी जड़ी लगती।
मेरी हर कामयाबी पर सबसे पहले ताली उनकी
उनकी चाल में ईमान का उजाला।
हार पर सबसे पहले हिम्मत बढ़ाती आवाज़ वही
उनकी मुस्कान से घर का हर कोना निराला।
पिता के पाँव में रास्तों की थकान पिघलती
कम माँगा, पर सब कुछ दे गए।
उनकी मुस्कान से घर की दीवारें भी खिलती
अपने हिस्से की धूप-छाँव भी दे गए।
वो कम मांगते, पर बहुत कुछ दे जाते
उसूलों की राह पे चलना उन्होंने सिखाया।
अपने हिस्से का साया हमपर छोड़ जाते
साथ ही पड़ोसी का हाथ थामना भी बताया।
उन्होंने इमान का मतलब अपनी चाल से समझाया
नज़र उनकी जहाँ पड़ी, रास्ता बनता।
सच बोलना, सीधा चलना, यही उसूल सिखाया
मुश्किल का पहाड़ भी कंकड़-सा लगता।
पिता की आँखों में मेरी मंज़िल साफ़ दिखती
ढाल, राह और साहस – सब कुछ वही।
उनकी नज़र जहाँ पड़े, मुश्किल भी हलक़ी लगती
मेरे मन के अँधेरों में दीपक वही।
वो मेरी ढाल, मेरी राह, मेरा साहस बने
उनके नाम से दिल में साहस जगता।
हर संभव में असंभव को संभव करने लगे
मेरी धड़कनों में हौसलों का स्वर जगता।
पिता का नाम लेते ही डर भाग जाता
हर दिन नए सबक मेरे थाम लेते।
छाती में हौसला बनकर पहाड़ जाग जाता
सपनों को आकार देने की राह दिखाते।
उनके सिखाए सबक़ मेरे रोज़ के सहारे
मेरी खुशी उनके लिए त्योहार बने।
उन्हीं से सीखा सच में सपने सँवारें
उनके बिना हर रंग बेकरार बने।
पिता की जेब में टँकी मेरी छोटी-छोटी खुशियाँ
धूप मुझे दे दी, छाँव ख़ुद ओढ़ ली।
उनके बिना अधूरी लगतीं सारी दुनिया की रौशनियाँ
कड़ी राहें मुझको, आसान राहें ख़ुद ले लीं।
उन्होंने अपने हिस्से की धूप मुझे दे दी
मेरे लिए वो रात भर जगते।
छाँव में ख़ुद रहे, मुझे रोशनी दे दी
सुबह की दौड़ में फिर सपने बुनते।
मेरे लिए वो चुपचाप हर रात जागे
छूते ही उँगली उनकी, डर छूमंतर।
सुबह फिर मुस्कान के साथ काम पर भागे
आसमान में लिख दूँ अपना मुक़द्दर।
उनकी उँगली छूते ही दुनिया आसान लगी
पिता की पूजा में मिलता साहस का जल।
हर मुश्किल में नई रौशनी जान लगी
उस जल से सीखा कैसे बनना कमल।
पिता की पूजा भी माँ जैसी पावन
इलाज वही, जब मन में डर की सिहरन।
उनकी इबादत में मिलता जीवन सावन
परवाज़ वही, जब टूटे उम्मीदों की डोर।
मेरे हर डर का सबसे पहला इलाज वही
सहारा सबसे बड़ा उनका साया।
मेरे हौसले का सबसे बड़ा परवाज़ वही
उनके बिना दिल ने सूना गाँव पाया।
पिता का होना ही सबसे बड़ा सहारा
चुप्पी में उनकी हजार बातें।
उनके बिना सूना लगता हर नज़ारा
मेरे लिए खोले अनगिनत राहें।
वो चुप रहे, मगर मेरे लिए पर्वत तोड़े
हथेली उनकी जैसे सुरक्षा का किला।
बिना कहे मेरे मन के सारे दरवाज़े खोले
माथे पर मेरे उन्होंने विश्वास का टीका।
उनकी हथेली में सुरक्षा का एक वादा
मेरे लहजे में उनकी ही रवानी।
मेरे माथे पर रखा उन्होंने विश्वास का प्याला
मेरे फ़ैसलों में उनकी नादानी से समझदानी।
मेरी आवाज़ में उनकी गूँज बसी रहती
दवा-सी उनकी झिड़की राहत दे जाए।
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