Maa Durga and Navratri Vrat Katha - माँ दुर्गा और नवरात्रि व्रत कथा महत्व, परंपराएँ और राज्यवार विशेषता (भक्ति स्पेशल)
🕉️ भाग 1 : प्रस्तावना – नवरात्रि का
महत्त्व और माँ दुर्गा की शक्ति
- नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ
- माँ दुर्गा की नव शक्तियाँ
- पौराणिक संदर्भ – देवी
भागवत, मार्कंडेय पुराण
- भक्तों के जीवन में नवरात्रि का
आध्यात्मिक स्थान
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भाग 2 : नवरात्रि
व्रत कथा
- दुर्गा सप्तशती और देवी महात्म्य
की कथा
- महिषासुर मर्दिनी की कथा
- नौ दिनों की कथा – प्रत्येक
दिन देवी का अवतार
- प्राचीन लोककथाएँ और ग्रामीण
मान्यताएँ
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भाग 3 : व्रत
व पूजा विधि
- व्रत के नियम और महत्व
- घट स्थापना विधि
- प्रतिदिन की पूजा विधि और मंत्र
- कन्या पूजन परंपरा
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भाग 4 : भारत
के विभिन्न राज्यों में नवरात्रि
- गुजरात – गरबा
और डांडिया
- बंगाल – दुर्गा
पूजा का भव्य रूप
- उत्तर भारत – दुर्गा
सप्तशती पाठ और रामलीला
- दक्षिण भारत – गोलू
और देवी अलंकरण
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भाग 5 : भक्तों
के अनुभव और निष्कर्ष
- भक्तों की लोककथाएँ और अनुभव
- आज के युग में नवरात्रि का महत्व
- समाजिक और सांस्कृतिक पहलू
- निष्कर्ष – माँ
दुर्गा भक्ति का संदेश
🕉️ प्रस्तावना – नवरात्रि
का महत्त्व और माँ दुर्गा की शक्ति
नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ
‘नवरात्रि’ संस्कृत के दो शब्दों से
मिलकर बना है – ‘नव’ जिसका
अर्थ है नौ और ‘रात्रि’ जिसका
अर्थ है रातें।
अर्थात्
नवरात्रि का सीधा अर्थ हुआ – नौ
रातों का पर्व।
ये नौ
रातें देवी-पूजा, साधना और आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करती हैं।
भक्त
मानते हैं कि इन नौ दिनों में देवी दुर्गा पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने भक्तों के
दुखों का नाश करती हैं और उन्हें शक्ति, ज्ञान और भक्ति का वरदान
देती हैं।
माँ दुर्गा की नव शक्तियाँ
नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ
स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा
जाता है।
ये
स्वरूप जीवन के अलग-अलग आयामों और ऊर्जा के प्रतीक हैं:
1. शैलपुत्री – पर्वतराज
हिमालय की पुत्री, सादगी और स्थिरता की प्रतीक।
2. ब्रह्मचारिणी – तप, संयम
और साधना की शक्ति।
3. चंद्रघंटा – सौंदर्य, शांति
और पराक्रम का संगम।
4. कूष्मांडा – ब्रह्मांड
की सृजनकर्ता, ऊर्जा
का स्रोत।
5. स्कंदमाता – मातृत्व
और करुणा की शक्ति।
6. कात्यायनी – दुष्टों
का संहार करने वाली वीरता की देवी।
7. कालरात्रि – अंधकार
और भय का नाश करने वाली।
8. महागौरी – पवित्रता
और ज्ञान की देवी।
9. सिद्धिदात्री – सिद्धि
और मोक्ष प्रदान करने वाली।
इन नवदुर्गाओं की साधना से भक्त अपने जीवन के
सभी कष्टों से मुक्त होकर धर्म, अर्थ, काम
और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।
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पौराणिक संदर्भ – देवी
भागवत और मार्कंडेय पुराण
नवरात्रि की महिमा और माँ दुर्गा की शक्ति का
वर्णन प्रमुख रूप से देवी
भागवत पुराण और मार्कंडेय पुराण (जिसमें दुर्गा सप्तशती सम्मिलित
है) में मिलता है।
·
महिषासुर
मर्दिनी कथा – असुरराज महिषासुर ने जब देवताओं को पराजित कर
स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया, तब ब्रह्मा, विष्णु
और महेश की शक्तियों से एक दिव्य देवी का उदय हुआ। वह थीं माँ दुर्गा। उन्होंने नौ
रातों और दस दिनों तक भीषण युद्ध किया और अंततः महिषासुर का वध कर ब्रह्मांड को
पाप और अत्याचार से मुक्त कराया।
·
देवी
महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) में माँ की महिमा का विस्तार
से वर्णन है। इसमें बताया गया है कि माँ केवल राक्षसों का ही नाश नहीं करतीं, बल्कि
भक्तों के भीतर छिपे भय, अज्ञान और मोह को भी दूर करती हैं।
·
देवी
भागवत पुराण में नवरात्रि व्रत का महत्त्व समझाते हुए कहा
गया है कि जो भक्त नवरात्रि में श्रद्धा से व्रत करता है, उसके
सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन में समृद्धि और शांति मिलती है।
भक्तों के जीवन में नवरात्रि का
आध्यात्मिक स्थान
नवरात्रि केवल उत्सव नहीं बल्कि आध्यात्मिक साधना का
अवसर है।
भक्त
इन नौ दिनों में उपवास, ध्यान, मंत्र-जप और हवन करते हैं।
इससे उनका मन शुद्ध होता है और आत्मबल बढ़ता है।
·
उपवास से
शरीर शुद्ध होता है।
·
मंत्र-जप से
मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
·
पाठ
और भजन से भक्ति-भाव जागृत होता है।
·
दान
और सेवा से करुणा और परोपकार की भावना विकसित होती है।
नवरात्रि के समय वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा
फैलती है।
गाँव
और शहरों में दुर्गा पंडाल सजाए जाते हैं, गरबा और डांडिया जैसे
सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।
यह
पर्व लोगों को न केवल धर्म से जोड़ता है बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक उत्साह का भी
प्रतीक है।
निष्कर्ष (भाग 1)
नवरात्रि, माँ दुर्गा की अनंत शक्तियों
का स्मरण कराने वाला महान पर्व है।
यह
केवल देवी-पूजा तक सीमित नहीं बल्कि आत्मशुद्धि, साधना
और जीवन की सकारात्मकता को जगाने का अवसर है।
नवरात्रि
का हर दिन हमें यह सिखाता है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, अंततः
विजय सदैव सत्य और धर्म की ही होती है।
🕉️ भाग 2 : नवरात्रि
व्रत कथा
नवरात्रि व्रत का महत्व
नवरात्रि व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है
बल्कि यह आत्मा को शुद्ध करने, शरीर को संयमित रखने और मन
को सकारात्मक ऊर्जा से भरने का मार्ग है।
मान्यता
है कि जो भक्त पूरे श्रद्धा-भाव से नवरात्रि का व्रत करता है, उसकी
सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और माँ दुर्गा उसे सुख, समृद्धि
और मोक्ष का आशीर्वाद देती हैं।
महिषासुर मर्दिनी की कथा
नवरात्रि व्रत की सबसे प्रसिद्ध कथा है – महिषासुर मर्दिनी।
·
असुरराज महिषासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी
से वरदान पाया कि कोई देवता या दानव उसे नहीं मार सकता।
·
वरदान पाकर वह अत्याचारी बन गया और देवताओं को
पराजित कर स्वर्गलोक पर कब्ज़ा कर लिया।
·
तब देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु
और महेश से सहायता माँगी।
·
तीनों देवताओं ने अपनी शक्तियों को एकत्र किया, और
उनसे एक दिव्य रूप प्रकट हुआ — देवी
दुर्गा।
माँ दुर्गा ने पर्वतराज हिमालय पर आकर देवताओं
से अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए।
उन्होंने
शेर पर आरूढ़ होकर महिषासुर से नौ दिनों और दस रातों तक युद्ध किया।
अंततः
दसवें दिन (विजयादशमी) को उन्होंने महिषासुर का वध किया और धरती पर धर्म की
स्थापना की।
इसी
कारण नवरात्रि को शक्ति की पूजा का पर्व माना जाता है और दसवाँ दिन विजयादशमी
कहलाता है।
नौ दिनों की कथा – देवी
के स्वरूप और उनकी विशेषता
1. प्रथम दिन – शैलपुत्री
हिमालय की पुत्री पार्वती का यह स्वरूप स्थिरता
और साहस का प्रतीक है। भक्त इस दिन माँ से जीवन की शुरुआत में स्थिरता और सफलता की
प्रार्थना करते हैं।
2. द्वितीय दिन – ब्रह्मचारिणी
यह स्वरूप तपस्या और संयम का प्रतीक है।
नवरात्रि के दूसरे दिन उपवास और संयम का विशेष महत्व है।
3. तृतीय दिन – चंद्रघंटा
माँ के मस्तक पर अर्धचंद्र की घंटा जैसी आकृति
होती है। यह स्वरूप शांति और वीरता दोनों का संगम है। इस दिन की साधना से भय और
नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
4. चतुर्थ दिन – कूष्मांडा
माँ ने अपनी दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की
सृष्टि की, इसलिए
उन्हें कूष्मांडा कहा गया। यह दिन ऊर्जा और सृजन शक्ति का प्रतीक है।
5. पंचम दिन – स्कंदमाता
कार्तिकेय की माता होने के कारण यह नाम पड़ा।
यह स्वरूप मातृत्व, करुणा और दया की मूर्ति है।
6. षष्ठम दिन – कात्यायनी
ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रकट हुईं। यह
स्वरूप दुष्टों के संहार और न्याय की स्थापना के लिए पूजित है।
7. सप्तम दिन – कालरात्रि
यह स्वरूप भय और अंधकार को नष्ट करने वाली है।
मान्यता है कि इस दिन साधना करने से जीवन के सभी भय समाप्त हो जाते हैं।
8. अष्टम दिन – महागौरी
अत्यंत शांत, निर्मल
और पवित्र स्वरूप। भक्त मानते हैं कि इस दिन साधना से जीवन में पवित्रता और
सुख-शांति आती है।
9. नवम दिन – सिद्धिदात्री
सभी सिद्धियाँ और वरदान प्रदान करने वाली देवी।
नवरात्रि का अंतिम दिन पूर्णता और मोक्ष का प्रतीक है।
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प्राचीन लोककथाएँ और क्षेत्रीय
मान्यताएँ
·
उत्तर
भारत में मान्यता है कि नवरात्रि में राम ने माँ
दुर्गा की पूजा करके रावण पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए इसे अकाल बोध भी
कहा जाता है।
·
गुजरात में
मान्यता है कि गरबा नृत्य माँ दुर्गा की आराधना का प्रतीक है, जिसमें
दीपक गर्भ में रखकर देवी की ऊर्जा का आह्वान किया जाता है।
·
बंगाल में
दुर्गा पूजा का स्वरूप अलग है। वहाँ इसे माँ के मायके आने का पर्व माना जाता है।
भक्त चार दिनों तक माँ का भव्य स्वागत करते हैं और दशमी को उन्हें विदा करते हैं।
·
ग्रामीण
क्षेत्रों में नवरात्रि के दौरान लोकगीत, झाँकियाँ
और जगराते का आयोजन होता है।
नवरात्रि व्रत करने की विधि
(संक्षेप में)
1. व्रतकर्ता
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
2. घर के
पवित्र स्थान पर घट
स्थापना करके देवी का आह्वान किया जाए।
3. नौ
दिनों तक व्रत रखकर फलाहार किया जाए।
4. प्रतिदिन
माँ के भिन्न स्वरूप की पूजा और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाए।
5. अष्टमी
या नवमी को कन्या
पूजन करके व्रत का समापन किया जाए।
भक्तों के लिए प्रेरणा
नवरात्रि की कथा यह संदेश देती है कि जब भी
अधर्म और अन्याय का बोलबाला होगा, तब ईश्वर किसी न किसी रूप
में प्रकट होकर धर्म की रक्षा करेंगे।
माँ
दुर्गा की यह कथा केवल पौराणिक नहीं बल्कि यह हमें जीवन की कठिनाइयों से लड़ने का
साहस और आत्मविश्वास भी देती है।
निष्कर्ष (भाग 2)
नवरात्रि व्रत कथा हमें यह सिखाती है कि धैर्य, श्रद्धा
और साधना से असंभव भी संभव हो सकता है।
महिषासुर
मर्दिनी की कथा से यह स्पष्ट होता है कि चाहे अहंकार और अन्याय कितना भी बड़ा
क्यों न हो, अंततः
धर्म और सत्य की विजय निश्चित है।
🕉️ भाग 3 : नवरात्रि
व्रत व पूजा विधि
नवरात्रि व्रत का मूल भाव
नवरात्रि केवल उपवास करने या खान-पान में
परहेज़ का पर्व नहीं है। यह आत्मशुद्धि, संयम और आध्यात्मिक उन्नति
का साधन है।
भक्त
इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना करके शक्ति, ज्ञान
और भक्ति का वरदान पाते हैं।
व्रत के नियम
1. शुद्ध आचरण – व्रत
के दौरान मन, वचन और
कर्म से पवित्र रहना चाहिए। झूठ, क्रोध और हिंसा से बचें।
2. उपवास – भक्त
फलाहार, दूध, साबूदाना, सिंघाड़े
का आटा आदि ग्रहण करते हैं। कुछ लोग निर्जला उपवास भी रखते हैं।
3. सात्त्विकता – नवरात्रि
में तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज, मांस
और शराब वर्जित माने जाते हैं।
4. दैनिक पूजा – प्रतिदिन
प्रातः और संध्या को आरती, मंत्र-जप और भजन करें।
5. दान और सेवा – गरीबों
को भोजन और वस्त्र दान करना पुण्यकारी माना गया है।
घट स्थापना विधि (कलश स्थापना)
नवरात्रि का आरंभ घट स्थापना से
होता है। यह पूरे पर्व की नींव है।
विधि:
1. प्रातः
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. पूजा
स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और लाल कपड़ा बिछाएँ।
3. मिट्टी
के पात्र में जौ या गेहूँ बोकर उस पर जल से भरा कलश स्थापित करें।
4. कलश
के ऊपर नारियल, आम के पत्ते और कलावा बाँधकर रखें।
5. कलश
के समीप माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
6. दीपक
जलाकर देवी का आह्वान करें और संकल्प लें –
“ॐ देवी दुर्गायै नमः, मैं
अमुक नाम, श्रद्धा और भक्ति के साथ यह नवरात्रि व्रत आरंभ
करता/करती हूँ।”
प्रतिदिन की पूजा विधि
·
प्रथम
दिन – माँ
शैलपुत्री की पूजा करें, उन्हें फल और सफेद फूल अर्पित करें।
·
दूसरे
दिन – माँ
ब्रह्मचारिणी को शहद और मिठाई चढ़ाएँ।
·
तीसरे
दिन – माँ
चंद्रघंटा की आरती करें, दूध और खीर का भोग लगाएँ।
·
चौथे
दिन – माँ
कूष्मांडा को मालपुआ और पुष्प अर्पित करें।
·
पाँचवें
दिन – माँ
स्कंदमाता को केले का भोग चढ़ाएँ।
·
छठे
दिन – माँ
कात्यायनी को शहद और लाल फूल अर्पित करें।
·
सातवें
दिन – माँ
कालरात्रि को गुड़ और धूप-दीप अर्पित करें।
·
आठवें
दिन – माँ
महागौरी को नारियल और हलवा-पूरी का भोग लगाएँ।
·
नवें
दिन – माँ सिद्धिदात्री की पूजा करके सब सिद्धियों का
आशीर्वाद माँगें।
मंत्र-जप और पाठ
नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती का
पाठ सबसे फलदायी माना गया है।
साथ
ही भक्त निम्न मंत्रों का जप करते हैं:
·
बीज
मंत्र – “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।”
·
देवी
मंत्र – “या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो
नमः॥”
प्रत्येक दिन कम से कम 108 बार
मंत्र-जप करने से माँ की कृपा शीघ्र मिलती है।
कन्या पूजन की परंपरा
नवरात्रि के अष्टमी या नवमी तिथि
को कन्या पूजन किया
जाता है।
विधि:
1. 7, 9 या 11 छोटी
कन्याओं और एक छोटे बालक (लंगूर) को आमंत्रित करें।
2. उनके
चरण धोकर उन्हें आसन पर बैठाएँ।
3. उन्हें
हलवा, पूरी, चने
का प्रसाद खिलाएँ।
4. उनके
चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।
5. अंत
में उन्हें दक्षिणा और उपहार दें।
यह परंपरा माँ दुर्गा के बाल रूप की पूजा मानी
जाती है और इसे अत्यंत शुभफलदायी कहा गया है।
नवरात्रि में क्या करें और क्या न
करें
क्या करें ✅
·
रोज़ सुबह-शाम दीपक और अगरबत्ती जलाएँ।
·
व्रत के दौरान सात्त्विक भोजन करें।
·
दुर्गा सप्तशती या देवी भागवत का पाठ करें।
·
जरूरतमंदों की सेवा करें।
क्या न करें ❌
·
नशा, मांसाहार और झूठ से बचें।
·
नकारात्मक सोच और क्रोध से दूर रहें।
·
दूसरों का अपमान न करें।
आध्यात्मिक लाभ
नवरात्रि व्रत और पूजा से न केवल धार्मिक पुण्य
मिलता है बल्कि मानसिक और शारीरिक शांति भी प्राप्त होती है।
·
शरीर हल्का और स्वस्थ रहता है।
·
मन में आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा आती है।
·
घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
निष्कर्ष (भाग 3)
नवरात्रि व्रत और पूजा विधि केवल धार्मिक
अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन को अनुशासन, संयम और सकारात्मकता की ओर
ले जाने का साधन है।
इन नौ
दिनों की साधना से भक्त अपने भीतर नई ऊर्जा का अनुभव करता है और माँ दुर्गा से
शक्ति, भक्ति
और सिद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
🕉️ भाग 4 : भारत
के विभिन्न राज्यों में नवरात्रि का स्वरूप
भारत विविधता में एकता का देश है। यहाँ हर
त्यौहार अलग-अलग राज्यों में अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। नवरात्रि भी ऐसा
ही पर्व है जिसे पूरे देश में अलग-अलग परंपराओं और रीति-रिवाज़ों के साथ मनाया
जाता है। कहीं यह माँ दुर्गा की शक्ति की पूजा है, तो
कहीं यह सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले लेता है।
गुजरात – गरबा
और डांडिया की धूम
गुजरात में नवरात्रि को सांस्कृतिक उत्सव का पर्व कहा
जाता है। यहाँ गरबा और डांडिया रास नवरात्रि की आत्मा है।
·
गरबा में दीपक को मिट्टी के पात्र में रखकर
उसके चारों ओर स्त्रियाँ और पुरुष नृत्य करते हैं।
·
यह दीपक गर्भस्थ ऊर्जा और माँ दुर्गा की शक्ति
का प्रतीक माना जाता है।
·
डांडिया रास को "तलवारों का युद्ध" भी
कहा जाता है, जिसे
लोग दो डंडियों के साथ नाचकर प्रस्तुत करते हैं।
·
पूरा गुजरात इन नौ रातों में रोशनी, संगीत
और नृत्य से झूम उठता है।
पश्चिम बंगाल – दुर्गा
पूजा का भव्य उत्सव
पश्चिम बंगाल में नवरात्रि को मुख्य रूप से दुर्गा पूजा कहा
जाता है।
·
यहाँ मान्यता है कि माँ दुर्गा अपने मायके आती
हैं और चार दिन तक अपने परिवार के साथ रहती हैं।
·
विशाल पंडाल बनाए जाते हैं जिनमें देवी दुर्गा
की भव्य प्रतिमाएँ सजाई जाती हैं।
·
ढाक (बड़ा नगाड़ा), धुनुची
नृत्य और सिंदूर खेला यहाँ की खास परंपराएँ हैं।
·
दशमी के दिन माँ की प्रतिमाओं का विसर्जन किया
जाता है और लोग “आसचे बोछोर अबार होबे” (अगले
साल फिर आएँगी) कहते हुए विदाई देते हैं।
उत्तर भारत – रामलीला
और दुर्गा सप्तशती पाठ
उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, मध्य
प्रदेश आदि) में नवरात्रि का स्वरूप धार्मिक और सामाजिक दोनों होता है।
·
घर-घर में घट स्थापना और
दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।
·
नौ दिनों तक लोग उपवास रखते हैं और देवी के
अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं।
·
रामलीला का मंचन भी इन दिनों होता है, जो
दशमी को रावण दहन के साथ समाप्त होता है।
·
गाँवों में जगराते, भजन-कीर्तन
और झाँकियाँ नवरात्रि की शोभा बढ़ाते हैं।
दक्षिण भारत – गोलू
और अलंकरण परंपरा
दक्षिण भारत (तमिलनाडु, आंध्र
प्रदेश, कर्नाटक
और केरल) में नवरात्रि को गोलू या बोम्मई कोलु कहा
जाता है।
·
घरों में लकड़ी या लोहे की सीढ़ियों पर मिट्टी
और लकड़ी की मूर्तियाँ सजाई जाती हैं।
·
इन मूर्तियों में देवी-देवताओं के साथ-साथ समाज, पशु-पक्षी
और लोक जीवन के दृश्य भी दिखाए जाते हैं।
·
स्त्रियाँ घर-घर जाकर भजन गाती हैं और सुंदल (चना
और नारियल से बनी डिश) प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है।
·
कर्नाटक में इस समय मैसूर दशहरा भी
प्रसिद्ध है, जिसमें
देवी चामुंडेश्वरी की पूजा होती है और भव्य शोभायात्रा निकलती है।
महाराष्ट्र – घटस्थापना
और आरती
महाराष्ट्र में नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से
होती है।
·
नौ दिनों तक घरों और मंदिरों में देवी की पूजा
और आरती होती है।
·
यहाँ के लोग देवी को विशेष रूप से “अंबा माता” कहकर
पूजते हैं।
·
गरबा और डांडिया का आयोजन भी यहाँ लोकप्रिय हो
गया है।
जम्मू-कश्मीर और हिमालयी क्षेत्र
·
कटरा
का वैष्णो देवी धाम नवरात्रि के समय लाखों
भक्तों से भर जाता है।
·
लोग माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए पैदल
यात्रा करते हैं।
·
हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में इसे “कुल
पूजा” का
पर्व भी कहा जाता है, जहाँ लोग कुल देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।
निष्कर्ष (भाग 4)
भारत के हर राज्य में नवरात्रि का स्वरूप अलग
है,
लेकिन
भाव एक ही है – माँ
दुर्गा की शक्ति और भक्ति।
गुजरात
के गरबा से लेकर बंगाल की दुर्गा पूजा, उत्तर भारत की रामलीला से
लेकर दक्षिण भारत के गोलू तक, यह पर्व भारत की सांस्कृतिक
विविधता और एकता दोनों का सुंदर उदाहरण है।
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