Mother Katyayani sixth form of Navratri - माँ कात्यायनी नवरात्रि का छठा स्वरूप

 

परिचय-

                                  🌸 माता कात्यायनी का चित्र 🌸



हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है। इन नौ रूपों में छठा रूप है माँ कात्यायनी, जिन्हें विवाह और प्रेम की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। देवी का यह स्वरूप शक्ति, साहस, त्याग और साधना का प्रतीक है।

 

कहते हैं कि यदि कोई अविवाहित कन्या नवरात्रि के छठे दिन श्रद्धापूर्वक माँ कात्यायनी की पूजा करती है, तो उसके विवाह में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और उसे योग्य वर प्राप्त होता है। इसी कारण कात्यायनी देवी को विशेष रूप से कन्याओं की देवी कहा गया है।

माँ कात्यायनी की उत्पत्ति कथा

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देवी भागवत और मार्कंडेय पुराण में वर्णन मिलता है कि एक समय दानव महिषासुर ने तीनों लोकों में आतंक मचाया। देवताओं ने जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश से सहायता मांगी, तो तीनों ने अपनी-अपनी शक्तियों का संचार कर एक तेजस्विनी स्त्री को प्रकट किया।

 

वह तेजस्विनी ही आदि शक्ति दुर्गा थीं। इसी दिव्य स्वरूप से महिषासुर का वध करने हेतु अनेक रूप प्रकट हुए। इन्हीं में से एक रूप था माँ कात्यायनी।

 

कात्यायन ऋषि ने कठोर तप करके देवी को प्रसन्न किया और उनके घर में देवी का प्राकट्य हुआ। इसलिए इन्हें कात्यायनी कहा जाता है।

 

माँ कात्यायनी ने महिषासुर का वध कर देवताओं को उनके भय से मुक्ति दिलाई। इस प्रकार वे अधर्म और अन्याय के विनाश का प्रतीक बन गईं।

 

माँ कात्यायनी का स्वरूप

 

माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और तेजस्वी है।

 

इनकी चार भुजाएँ हैं।

 

दाहिने हाथ में अभयमुद्रा और वरमुद्रा है।

 

बाएँ हाथ में कमल और तलवार धारण करती हैं।

 

इनका वाहन सिंह है, जो साहस और शक्ति का प्रतीक है।

 

इनका रंग स्वर्ण के समान चमकदार है।

 

इनका तेज देखकर असुर भी भयभीत हो जाते हैं।

 

पूजा विधि

 

नवरात्रि के छठे दिन श्रद्धालुजन माँ कात्यायनी की पूजा विधिपूर्वक करते हैं।

 

आवश्यक सामग्री:

 

पीला या लाल वस्त्र

 

फूल (विशेषकर गुलाब और कमल)

 

दीपक और धूप

 

गंगाजल, अक्षत, रोली

 

सुगंधित प्रसाद

 

पूजा क्रम:

 

प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

 

पूजा स्थान पर कलश स्थापित कर माँ कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र रखें।

 

दीपक जलाएँ और धूप-दीप अर्पित करें।

 

लाल फूल और सुगंधित प्रसाद चढ़ाएँ।

 

मंत्रों का जाप करें।

 

माँ से विवाह, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद माँगें।

 

माँ कात्यायनी के मंत्र

बीज मंत्र:

 

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ कात्यायन्यै नमः

 

स्तुति मंत्र:

 

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्यान्महासुरमर्दिनी॥

 

विवाह हेतु विशेष मंत्र:

 

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।

नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः॥

 

यह मंत्र विशेष रूप से विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करता है।

 

ज्योतिषीय महत्व

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ज्योतिष शास्त्र में माँ कात्यायनी का संबंध गुरु (बृहस्पति) ग्रह से माना गया है। गुरु ग्रह विवाह, संतान और ज्ञान का कारक है।

 

जिन जातकों की कुंडली में विवाह में बाधा आती है, वे माँ कात्यायनी की पूजा करें।

 

विवाह योग्य कन्याएँ यदि लगातार छह दिन तक नवरात्रि में कात्यायनी मंत्र का जाप करें, तो शीघ्र विवाह होता है।

 

ग्रहों के अशुभ प्रभाव भी कम हो जाते हैं।

 

माँ कात्यायनी की उपासना से लाभ

 

विवाह में आ रही सभी बाधाएँ दूर होती हैं।

 

पति-पत्नी के संबंध मधुर और मजबूत बनते हैं।

 

जीवन में साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है।

 

शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।

 

संतान सुख की प्राप्ति होती है।

 

व्यवसाय और नौकरी में सफलता मिलती है।

 

मन को शांति और अध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।

 

आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता

 

आज के समय में भी माँ कात्यायनी की पूजा का महत्व उतना ही है जितना प्राचीन काल में था।

 

जीवन में बढ़ते तनाव और रिश्तों की समस्याओं के बीच उनकी साधना से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

 

विवाह में देरी और संबंधों में खटास दूर करने के लिए आज भी लोग माँ कात्यायनी की शरण लेते हैं।

 

स्त्रियों और कन्याओं के लिए यह पूजा आत्मबल और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।

 

निष्कर्ष

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माँ कात्यायनी नवरात्रि के छठे दिन पूजित देवी हैं। वे शक्ति, साहस, विवाह-सुख और समृद्धि की अधिष्ठात्री हैं। उनकी पूजा से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और भक्त को सफलता और आनंद प्राप्त होता है।

 

नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी को समर्पित है। यदि श्रद्धापूर्वक पूजा की जाए, तो अविवाहित कन्याओं का विवाह शीघ्र होता है, दांपत्य जीवन सुखमय बनता है और जीवन में शांति एवं समृद्धि आती है।

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माँ कात्यायनी से जुड़ी प्राचीन कथाएँ

 

श्रीमद्भागवत और पुराणों में उल्लेख

 

गोपी और श्रीकृष्ण कथा

 

माँ कात्यायनी के नाम और विशेष उपनाम

 

व्रत और अनुष्ठान विस्तार से

 

लोक परंपरा और ग्रामीण पूजा विधि

 

विभिन्न राज्यों में पूजा की अलग परंपराएँ

 

भक्तों के अनुभव और लोककथाएँ

 

नवरात्रि के छठे दिन का महत्व ज्योतिषीय दृष्टि से

 

आध्यात्मिक लाभ और ध्यान साधना

 

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🌺 माँ कात्यायनी से जुड़ी प्राचीन कथाएँ

 

माँ कात्यायनी का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कथा के अनुसार जब महिषासुर का अत्याचार चरम सीमा पर पहुँच गया, तब सभी देवताओं ने मिलकर देवी की आराधना की। उस समय ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी शक्तियों का संचार किया और एक तेजस्विनी देवी प्रकट हुईं। यह स्वरूप कात्यायन ऋषि के घर जन्मा, इसलिए इन्हें कात्यायनी कहा गया।

 

एक अन्य कथा के अनुसार, कात्यायन ऋषि ने कठोर तपस्या की और देवी ने प्रसन्न होकर उनके घर अवतार लिया। जब महिषासुर ने देवताओं को पराजित कर दिया, तब माँ कात्यायनी ने सिंह पर सवार होकर युद्ध किया और उसका वध किया। इस प्रकार वे महिषासुरमर्दिनी कहलाईं।

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📖 श्रीमद्भागवत और पुराणों में उल्लेख

 

श्रीमद्भागवत महापुराण के दसवें स्कंध में वर्णन है कि व्रज की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी देवी की आराधना की।

 

देवी भागवत पुराण में कात्यायनी को आदिशक्ति का छठा रूप बताया गया है।

 

मार्कंडेय पुराण में भी माँ कात्यायनी की स्तुति और उनकी महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है।

 

👩🌾 गोपी और श्रीकृष्ण कथा

 

व्रज की गोपियाँ जब युवावस्था में पहुँचीं, तो उन्होंने निश्चय किया कि वे श्रीकृष्ण को ही अपना पति बनाएँगी। इसके लिए उन्होंने पूरे मार्गशीर्ष मास में यमुना तट पर स्नान किया और प्रतिदिन माँ कात्यायनी की पूजा की।

 

वे गोपियाँ देवी से प्रार्थना करती थीं:

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।

नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः॥

 

देवी कात्यायनी ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया और अंततः श्रीकृष्ण उनके जीवनसाथी बने। यह कथा माँ कात्यायनी को विवाह और प्रेम की देवी सिद्ध करती है।

 

🌸 माँ कात्यायनी के नाम और उपनाम

 

माँ कात्यायनी के कई नाम और उपनाम प्रचलित हैं:

 

महिषासुरमर्दिनी महिषासुर का वध करने वाली।

 

चन्द्रहासिनी चन्द्रहास (तलवार) धारण करने वाली।

 

आदिशक्ति समस्त शक्तियों का स्रोत।

 

वरदायिनी वरदान देने वाली।

 

कन्याप्रिय अविवाहित कन्याओं की आराध्या।

 

🙏 व्रत और अनुष्ठान विस्तार से

 

नवरात्रि के छठे दिन किया जाने वाला कात्यायनी व्रत विशेष रूप से विवाह योग्य कन्याओं के लिए शुभ माना जाता है।

 

प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

 

माँ कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र पर लाल फूल, हल्दी, चंदन और रोली अर्पित करें।

 

मंत्र का 108 बार जाप करें।

 

दिनभर सात्विक भोजन ग्रहण करें।

 

शाम को कन्याओं को भोजन कराएँ और उन्हें उपहार दें।

 

🏡 लोक परंपरा और ग्रामीण पूजा विधि

 

भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में माँ कात्यायनी की पूजा परंपरागत ढंग से की जाती है।

 

गाँवों में महिलाएँ मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा करती हैं।

 

लोकगीतों में देवी की स्तुति गाई जाती है।

 

ढोलक और मंजीरे के साथ भजन-कीर्तन किया जाता है।

 

कन्याओं के विवाह हेतु विशेष कात्यायनी व्रत कथा पढ़ी जाती है।

 

🌍 विभिन्न राज्यों में पूजा की अलग परंपराएँ

 

उत्तर भारत अविवाहित कन्याएँ विशेष रूप से यह व्रत रखती हैं।

 

बंगाल दुर्गा पूजा में कात्यायनी को महालक्ष्मी के रूप में पूजते हैं।

 

गुजरात गरबा और डांडिया में छठे दिन कात्यायनी देवी की महिमा गाई जाती है।

 

दक्षिण भारत यहाँ कन्याएँ देवी की पूजा कर विवाह की कामना करती हैं।

 

🙌 भक्तों के अनुभव और लोककथाएँ

 

कई भक्तों ने अनुभव किया है कि माँ कात्यायनी की पूजा से उनके विवाह में आ रही रुकावटें दूर हुईं।

ग्रामीण अंचलों में कथाएँ सुनाई जाती हैं कि जब-जब गाँव में विपत्ति आई, माँ कात्यायनी ने अपने स्वरूप से रक्षा की।

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🌌 नवरात्रि के छठे दिन का महत्व (ज्योतिषीय दृष्टि से)

 

यह दिन गुरु ग्रह से जुड़ा हुआ है।

 

गुरु का प्रभाव ज्ञान, विवाह और संतान सुख पर पड़ता है।

 

इस दिन पूजा करने से गुरु दोष दूर होते हैं।

 

विवाह में आ रही अड़चनें और कुंडली के ग्रहदोष दूर होते हैं।

 

🧘 आध्यात्मिक लाभ और ध्यान साधना

 

माँ कात्यायनी की साधना से:

 

मन शांत और संयमित होता है।

 

आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।

 

योग और साधना में सिद्धि प्राप्त होती है।

 

आध्यात्मिक चेतना जाग्रत होती है।

 

मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

 

ध्यान विधि:

 

आँखें बंद कर माँ कात्यायनी का स्वरूप मन में लाएँ।

 

उनके मंत्र का धीमे स्वर में जाप करें।

 

कमलासन पर बैठकर ध्यान करने से दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है।

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निष्कर्ष (Niskarsh)

 

माँ कात्यायनी नवरात्रि के छठे दिन पूजित होने वाली आदि शक्ति दुर्गा का छठा स्वरूप हैं। वे केवल असुरों के संहार और धर्म की रक्षा का ही प्रतीक नहीं, बल्कि विवाह, प्रेम, सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक चेतना की अधिष्ठात्री देवी भी हैं।

 

प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है कि गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी की आराधना की।

 

लोक परंपरा से लेकर आज के आधुनिक जीवन तक, माँ कात्यायनी की पूजा का महत्व बना हुआ है।

 

उनकी उपासना से विवाह में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं, ग्रह दोष शांत होते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि आती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

 

सिंह पर आरूढ़ माँ कात्यायनी का स्वरूप हमें साहस, आत्मविश्वास और धर्म की रक्षा का संदेश देता है।

 

🙏 इसलिए नवरात्रि के छठे दिन श्रद्धापूर्वक माँ कात्यायनी की पूजा करके हर भक्त अपने जीवन में साहस, सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक संतोष प्राप्त कर सकता है।

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