Dussehra 2025: History of Vijayadashami - दशहरा 2025: विजयदशमी का इतिहास, महत्व और भारत में उत्सव

जानिए - दशहरा ,विजयदशमी का इतिहास, रामायण और महिषासुर मर्दिनी कथा, भारत में विभिन्न परंपराएँ, सांस्कृतिक महत्व और आधुनिक स्वरूप।

📜 भाग 1

प्रस्तावना

भारत विविधताओं का देश है जहाँ प्रत्येक पर्व अपने भीतर गहन सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व समेटे हुए है। इन पर्वों में दशहरा या विजयदशमी का विशेष स्थान है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, आचार–विचार और समाज की एकता का भी प्रतीक है।

दशहरा, जिसे विजयदशमी भी कहा जाता है, अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर धर्म की विजय और अधर्म का नाश किया था। यही कारण है कि इसे सत्य की असत्य पर विजय का पर्व कहा जाता है।

इसके साथ ही, एक और पौराणिक कथा के अनुसार, माँ दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर नामक असुर का संहार किया था। इस प्रकार यह दिन शक्ति और धर्म की विजय का प्रतीक है।


भारत में दशहरा केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। गाँव–गाँव और शहर–शहर में मेलों का आयोजन होता है। विशेषकर उत्तर भारत में रामलीला का मंचन और रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले दहन का आयोजन होता है। दक्षिण भारत में मैसूर दशहरा विश्व प्रसिद्ध है, जहाँ भव्य शोभायात्राएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।

आज के समय में भी दशहरा हमें यही प्रेरणा देता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, यदि हम धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हैं तो अंततः विजय हमारी ही होगी

📜 भाग 2 - दशहरे का इतिहास और पौराणिक कथाएँ

दशहरा, जिसे विजयदशमी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति के सबसे प्राचीन और गौरवशाली त्योहारों में से एक है। इस पर्व के पीछे कई ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं, जो इसे और भी अधिक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक बनाती हैं।

  1. रामायण की कथा रावण वध


दशहरे का सबसे प्रसिद्ध प्रसंग रामायण से जुड़ा हुआ है।
अयोध्या के राजकुमार भगवान श्रीराम ने जब माता सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए लंका पर चढ़ाई की, तब उनके और रावण के बीच युद्ध हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला और अंततः अश्विन शुक्ल दशमी को श्रीराम ने रावण का वध किया।

रावण केवल राक्षस ही नहीं बल्कि महान विद्वान, शिवभक्त और तपस्वी भी था, परंतु उसकी अहंकार और अधर्म की प्रवृत्ति ने उसे विनाश की ओर धकेल दिया। श्रीराम ने धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए उसका अंत किया।
इसी घटना की स्मृति में हर वर्ष दशहरे पर रावण दहन किया जाता है।

यह कथा हमें सिखाती है कि चाहे किसी के पास कितना भी ज्ञान, बल या सामर्थ्य क्यों न हो, यदि वह अधर्म के मार्ग पर चलेगा तो अंततः उसका विनाश निश्चित है।

  1. महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा की विजय

दूसरी पौराणिक कथा देवी दुर्गा और असुर महिषासुर से जुड़ी है।
कहानी के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली असुर था जिसने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया था। उसकी शक्ति इतनी अधिक थी कि कोई देवता भी उसे परास्त नहीं कर पा रहा था।

तब सभी देवताओं की शक्तियों के समन्वय से माँ दुर्गा का प्रकट होना हुआ। माँ ने नौ दिनों तक महिषासुर और उसके सेनापतियों से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया।
इस दिन को ही विजयदशमी कहा गया यानी विजय का दिन।

यह कथा शक्ति, साहस और सत्य की जीत का प्रतीक है। इसीलिए नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा की उपासना कर दशमी के दिन उनकी विजय का उत्सव मनाया जाता है।

  1. अर्जुन द्वारा शमी पूजन

महाभारत के अनुसार, पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अपने अस्त्रशस्त्र शमी वृक्ष में छिपा दिए थे। जब अज्ञातवास की अवधि पूरी हुई, तो विजयदशमी के दिन अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने शस्त्र निकाले और उन्हें पूजकर पुनः प्रयोग में लाया।

इसीलिए दशहरे पर शमी पूजन की परंपरा भी है। विशेषकर महाराष्ट्र और कर्नाटक में लोग शमी वृक्ष की पूजा करके एकदूसरे को उसकी पत्तियाँ सोनाकहकर देते हैं।

  1. ऐतिहासिक महत्व

पौराणिक कथाओं के अलावा, दशहरे का ऐतिहासिक महत्व भी है।
भारत के कई राज्यों के राजवंशों ने दशहरे को युद्ध आरंभ करने के शुभ अवसर के रूप में माना। क्योंकि यह दिन विजय का प्रतीक है, इसलिए इसे आयुध पूजन का पर्व भी कहा जाता है।

राजपूत योद्धा दशहरे के दिन अपने हथियारों की पूजा करके युद्ध या नई योजनाओं की शुरुआत करते थे। आज भी कई स्थानों पर लोग अपने औजार, वाहन और कार्यसाधनों की पूजा करते हैं।

  1. सांस्कृतिक कथाएँ और लोककथाएँ

भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरे से जुड़ी अनेक लोककथाएँ प्रचलित हैं।

  • कुछ जगहों पर इसे फसल कटाई और नई शुरुआत का पर्व माना जाता है।
  • किसान इस दिन हल, बैल और खेतों की पूजा करते हैं।
  • व्यापारी इसे अपने खातों और व्यापार में नए आरंभ के रूप में देखते हैं।

इस प्रकार दशहरा केवल पौराणिक घटना भर नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग से जुड़ा हुआ उत्सव है।

🎉 भाग 3 : भारत में दशहरे के क्षेत्रीय स्वरूप और परंपराएँ

भारत एक विशाल और विविधताओं से भरा हुआ देश है। यहाँ हर त्यौहार को अलग–अलग ढंग से मनाया जाता है। दशहरा भी इसका अपवाद नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों में दशहरे का स्वरूप, पूजा–पद्धति और उत्सव अलग–अलग परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। यही विविधता भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खूबसूरती है।

1. उत्तर भारत में दशहरा – रामलीला और रावण दहन

उत्तर भारत में दशहरा मुख्य रूप से रामायण की कथा से जुड़ा हुआ है। यहाँ नवरात्रि के नौ दिनों तक रामलीला का मंचन किया जाता है। कलाकार भगवान श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रावण आदि के पात्रों को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं।

दशहरे के दिन भव्य मैदानों में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशाल पुतले खड़े किए जाते हैं। आतिशबाजी और पटाखों के बीच इनका दहन किया जाता है।

  • दिल्ली की रामलीला मैदान की रामलीला तो विश्व प्रसिद्ध है।
  • वाराणसी, प्रयागराज, लखनऊ और अयोध्या की रामलीलाएँ भी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं।

यह परंपरा केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे लोगों में अच्छाई और बुराई के बीच अंतर स्पष्ट होता है और समाज को यह संदेश मिलता है कि अंततः धर्म ही विजयी होता है।

2. दक्षिण भारत – मैसूर दशहरा



कर्नाटक का मैसूर दशहरा भारत के सबसे भव्य और ऐतिहासिक आयोजनों में गिना जाता है।

  • यहाँ विजयदशमी के अवसर पर मैसूर महल को हजारों रोशनी से सजाया जाता है।
  • पूरे शहर में सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, संगीत और उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
  • विजयदशमी के दिन भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें सजे–धजे हाथी, घोड़े और रथ शामिल होते हैं।

विशेष रूप से “जंबू सावरी” शोभायात्रा देखने के लिए देश–विदेश से लाखों लोग आते हैं। यह परंपरा मैसूर राज्य के वाडियार राजवंश से जुड़ी है और आज भी उतनी ही भव्यता से निभाई जाती है।






3. पश्चिम बंगाल – दुर्गा विसर्जन

पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के राज्यों में दशहरे का संबंध सीधे माँ दुर्गा पूजा से है।
नवरात्रि के नौ दिनों तक यहाँ दुर्गा पूजा के भव्य पंडाल सजाए जाते हैं। देवी की मूर्तियों की भव्य स्थापना होती है और लोग दिन–रात पूजा, भजन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और महाआरती में भाग लेते हैं।

दशमी के दिन माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का जल विसर्जन किया जाता है। इसे “विजया दशमीकहते हैं।
इस अवसर पर लोग एक–दूसरे को गले लगाकर “शुभ विजया” कहते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं।
विशेष रूप से कोलकाता की दुर्गा पूजा तो यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी मान्यता प्राप्त कर चुकी है।

4. महाराष्ट्र – शमी पूजन और सीमोल्लंघन

महाराष्ट्र में दशहरा “शमी पूजनऔर “सीमोल्लंघनकी परंपराओं से जुड़ा है।

  • लोग अपने घरों और मंदिरों में शमी वृक्ष की पूजा करते हैं।
  • शमी की पत्तियाँ सोने के समान मानी जाती हैं और इन्हें एक–दूसरे को उपहार के रूप में दिया जाता है।
  • सीमोल्लंघन का अर्थ है – सीमाओं को लांघना। इस दिन लोग गाँव की सीमाओं तक जाकर पूजा करते हैं और फिर एक–दूसरे से मिलते हैं।

महाराष्ट्र में यह त्यौहार भाईचारे, एकता और नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।

5. गुजरात – नवरात्रि और गरबा

गुजरात में दशहरा नवरात्रि के भव्य उत्सव के साथ जुड़ा हुआ है।
नवरात्रि के नौ दिनों तक लोग रात–रात भर गरबा और डांडिया नृत्य करते हैं। रंग–बिरंगे वस्त्र पहनकर हजारों लोग एक साथ संगीत और नृत्य के माध्यम से माँ दुर्गा की आराधना करते हैं।

दशमी के दिन देवी की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है और इसे विजय की घड़ी माना जाता है।

6. हिमाचल प्रदेश – कुल्लू दशहरा

हिमाचल का कुल्लू दशहरा भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ दशहरे का आयोजन रामलीला या रावण दहन से अलग है।

  • विजयदशमी के दिन भगवान रघुनाथ की शोभायात्रा निकाली जाती है।
  • आस–पास के गाँवों के देवता भी अपनी पालकियों के साथ इस उत्सव में शामिल होते हैं।
  • पूरा कुल्लू घाटी धार्मिक और सांस्कृतिक वातावरण में डूब जाती है।

कुल्लू दशहरा एक सप्ताह तक चलता है और इसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों की भरमार रहती है।

7. तमिलनाडु और केरल – देवी पूजा और गोलू

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में दशहरे पर “गोलूसजाने की परंपरा है।

  • घरों और मंदिरों में देवी–देवताओं की मूर्तियाँ सीढ़ीनुमा सजाकर रखी जाती हैं।
  • महिलाएँ और बच्चियाँ देवी की विशेष पूजा करती हैं और एक–दूसरे को “सिंदूर” और “सुपारी” का उपहार देती हैं।

यह परंपरा विशेष रूप से स्त्री–शक्ति की आराधना और सांस्कृतिक आदान–प्रदान को बढ़ावा देती है।

8. गोवा और अन्य राज्य

गोवा में दशहरे के अवसर पर नवरात्रि के दौरान देवी की विशेष आराधना की जाती है।
ओडिशा, बिहार, झारखंड और मध्य भारत में भी रामलीला और दुर्गा पूजा दोनों ही स्वरूप मिलते हैं।

इस तरह, भारत का हर राज्य दशहरे को अपने ढंग से मनाता है, परंतु सबका संदेश एक ही होता है – धर्म, सत्य और अच्छाई की जीत।

🌍 भाग 4 : आधुनिक समय में दशहरे का स्वरूप और सामाजिक महत्व

समय के साथ–साथ हर पर्व का स्वरूप बदलता है। परंपराएँ वही रहती हैं, परंतु उन्हें मनाने के तरीक़े समाज की बदलती जीवनशैली और आवश्यकताओं के अनुसार नए रूप ले लेते हैं। दशहरा भी आज के दौर में केवल धार्मिक पर्व भर नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता का उत्सव बन चुका है।

1. धार्मिक आस्था और श्रद्धा

आज भी दशहरा लोगों की आस्था और विश्वास से जुड़ा हुआ है।

  • लाखों लोग नवरात्रि में उपवास रखते हैं।
  • नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा, भजन और आराधना होती है।
  • दशमी के दिन लोग विजय की कामना के साथ शस्त्र, वाहन, औजार और व्यापार की पूजा करते हैं।

यह धार्मिक भावनाएँ न केवल ईश्वर में विश्वास को मजबूत करती हैं, बल्कि लोगों को अपने जीवन में भी धर्म और सत्य का पालन करने की प्रेरणा देती हैं।

2. सांस्कृतिक उत्सव

आधुनिक समय में दशहरा एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले चुका है।

  • गाँव–गाँव और शहर–शहर में मेले लगते हैं।
  • रामलीला और दुर्गा पूजा के मंचन से कला और संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
  • बच्चों और युवाओं को पौराणिक कथाओं और इतिहास से परिचित कराया जाता है।

आज भी दिल्ली की रामलीला, कोलकाता की दुर्गा पूजा, मैसूर दशहरा और कुल्लू दशहरा पूरे देश और विदेश से लोगों को आकर्षित करते हैं।

3. सामाजिक महत्व

दशहरे का सामाजिक महत्व भी बहुत गहरा है।

  • यह पर्व लोगों को एक–दूसरे से जोड़ता है।
  • सभी वर्गों, जातियों और धर्मों के लोग मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।
  • रावण दहन और दुर्गा विसर्जन जैसे आयोजनों में लाखों लोग बिना किसी भेदभाव के एकत्रित होते हैं।

इस प्रकार दशहरा सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश देता है।

4. आधुनिक बदलाव और तकनीकी प्रभाव

आज के समय में दशहरे पर तकनीकी प्रभाव भी साफ़ देखा जा सकता है।

  • रामलीला और रावण दहन का सीधा प्रसारण टीवी और इंटरनेट पर होता है।
  • सोशल मीडिया पर लोग विजयदशमी की शुभकामनाएँ भेजते हैं।
  • दुर्गा पूजा और नवरात्रि के पंडाल अब डिज़ाइन और लाइटिंग में आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं।

हालाँकि इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे – पटाखों से प्रदूषण, भीड़–भाड़, ट्रैफ़िक और सुरक्षा की समस्याएँ। परंतु इन सबके बावजूद उत्साह कम नहीं होता।

5. प्रेरणादायक संदेश

आधुनिक समय में दशहरा केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन की गहरी शिक्षाएँ भी देता है।

  • यह हमें याद दिलाता है कि बुराई चाहे कितनी भी ताक़तवर क्यों न हो, अंततः जीत अच्छाई की ही होती है।
  • यह अहंकार, अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने का साहस देता है।
  • यह पर्व नारी शक्ति और धर्म के सम्मान का प्रतीक है।

आज जब समाज कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब दशहरा हमें सिखाता है कि यदि हम एकजुट होकर धर्म और सत्य का साथ देंगे तो हर कठिनाई पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

✅ भाग 5 : निष्कर्ष और प्रेरणा

दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन का गहरा संदेश देने वाला उत्सव है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि सत्य और धर्म की विजय निश्चित है, चाहे अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न लगे।

रामायण की कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आदर्श, त्याग और धर्म का मार्ग अपनाने वाला सदैव विजयी होता है। माँ दुर्गा और महिषासुर की कथा यह बताती है कि जब भी अत्याचार अपनी सीमा लांघता है, तब शक्ति और साहस उसका अंत करने के लिए अवतरित होते हैं।

दशहरे का एक और महत्वपूर्ण संदेश यह है कि अहंकार और बुराई कभी स्थायी नहीं रह सकती। रावण जैसा ज्ञानी और पराक्रमी भी अपने घमंड और अधर्म के कारण पराजित हुआ। यह हमें जीवन में नम्रता, न्याय और सत्य का मार्ग अपनाने की प्रेरणा देता है।

आज के समय में जब समाज अनेक समस्याओं – जैसे हिंसा, अन्याय, भ्रष्टाचार और असमानता – से जूझ रहा है, तब दशहरा हमें एक नई ऊर्जा देता है। यह पर्व हमें यह विश्वास दिलाता है कि यदि हम मिलकर अच्छाई का साथ देंगे और बुराई के विरुद्ध खड़े होंगे, तो निश्चित ही विजय हमारी होगी।

साथ ही, दशहरे का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत बड़ा है। यह पर्व लोगों को एकजुट करता है, भाईचारे और सहयोग की भावना को मजबूत करता है। गाँव–गाँव और शहर–शहर में होने वाले मेले और उत्सव हमें हमारी परंपराओं से जोड़ते हैं और समाज में उत्साह और सकारात्मकता का संचार करते हैं।

निष्कर्षतः, दशहरा केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि जीवन का संदेश है –
👉
धर्म का पालन करो
👉
बुराई का अंत करो
👉
नारी शक्ति का सम्मान करो
👉
और हमेशा सत्य के मार्ग पर चलो

यदि हम इन शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार लें, तो न केवल हमारा व्यक्तिगत जीवन सफल और प्रेरणादायक बनेगा, बल्कि पूरा समाज भी शांति, समृद्धि और न्याय के मार्ग पर आगे बढ़ेगा।

🌸 समापन संदेश

आइए इस विजयदशमी पर हम सब यह संकल्प लें कि –

  • अपने भीतर की बुराइयों (क्रोध, लोभ, अहंकार, आलस्य) को जलाएँ।
  • अच्छाई, प्रेम, करुणा और सत्य को जीवन में अपनाएँ।
  • और धर्म, न्याय और एकता की मशाल को आगे बढ़ाएँ।

इसी में दशहरे का वास्तविक महत्व और हमारी संस्कृति की सच्ची पहचान छिपी है।

जय श्रीराम 🚩 | जय माता दी 🙏

 

POST BY - THE SHAYARI WORLD OFFICIAL

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