Shayari Collection in Hindi – मोहब्बत, दर्द, दोस्ती, ज़िंदगी और इंसानियत शायरी

चंद्रशेखर आज़ाद (Chandrashekhar Azad) भारत के महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हमेशा स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ाई में अपनी पूरी ज़िंदगी समर्पित कर दी और अंत तक “आज़ाद” ही रहे।
जन्म: 23 जुलाई 1906, भाभरा गाँव (मध्य प्रदेश)
पिता: पंडित सीताराम तिवारी
माता: जगरानी देवी
बचपन से ही वह साहसी और निडर स्वभाव के थे।
बनारस में पढ़ाई के दौरान उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया।
15 साल की उम्र में गिरफ्तार हुए और जब मजिस्ट्रेट ने नाम पूछा तो उन्होंने कहा –
“मेरा नाम आज़ाद है, पिता का नाम स्वतंत्रता और घर जेल है।”
तभी से उनका नाम "आज़ाद" पड़ गया।
वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य बने।
भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर कई आंदोलनों में भाग लिया।
काकोरी कांड (1925) में अहम भूमिका निभाई।
अंग्रेज़ों के लिए वे सबसे बड़े सिरदर्द बन चुके थे।
27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेज़ पुलिस ने उन्हें घेर लिया।
लंबे संघर्ष के बाद जब गोलियाँ खत्म हो गईं, तो उन्होंने आख़िरी गोली खुद को मार ली और अंग्रेज़ों के हाथों पकड़े नहीं गए।
इस तरह उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की कि –
“आज़ाद जिए हैं, आज़ाद ही मरेंगे।”
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के भाभरा गाँव में हुआ था।
उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी साधारण किसान थे।
माँ जगरानी देवी चाहती थीं कि बेटा पढ़-लिखकर पंडित बने।
लेकिन आज़ाद बचपन से ही स्वतंत्र और साहसी स्वभाव के थे।
1919 में हुए जालियाँवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें झकझोर दिया।
गांधीजी के असहयोग आंदोलन से वे जुड़ गए।
मात्र 15 साल की उम्र में गिरफ्तारी दी।
अदालत में पूछताछ के दौरान नाम पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया:
नाम: आज़ाद
पिता का नाम: स्वतंत्रता
निवास: जेल
यही उनकी पहचान बन गई और वे हमेशा “आज़ाद” कहलाए।
1920 के दशक में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हुए।
बाद में संगठन का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) रखा गया।
वे इस संगठन के मुख्य नेता बन गए।
उनके साथी: भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान, रामप्रसाद बिस्मिल।
काकोरी कांड (1925) – अंग्रेज़ों की ट्रेन लूटकर संगठन के लिए धन जुटाया।
सांडर्स हत्या (1928) – लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और साथियों ने सांडर्स को मारा, इसमें आज़ाद ने मदद की।
विभिन्न बम धमाके और हथियार प्रशिक्षण – उन्होंने इलाहाबाद और झाँसी को अपना ठिकाना बनाया, और युवा क्रांतिकारियों को प्रशिक्षित किया।
27 फरवरी 1931 को पुलिस ने उन्हें इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (आज का चंद्रशेखर आज़ाद पार्क) में घेर लिया।
उन्होंने लंबे समय तक गोलियाँ चलाकर अंग्रेज़ों का सामना किया।
अंत में जब गोली खत्म हो गई तो उन्होंने अपनी आखिरी गोली खुद पर दाग ली।
वे अंग्रेज़ों के हाथों कभी नहीं पकड़े गए और सचमुच “आज़ाद” रहे।
चंद्रशेखर आज़ाद का बलिदान आज भी युवाओं को प्रेरित करता है।
उनके नाम पर पार्क, संस्थान और स्मारक बनाए गए हैं।
उनका जीवन संदेश देता है कि –
“देश के लिए जीना और मरना ही सच्ची आज़ादी है।”
चंद्रशेखर आज़ाद सिर्फ़ एक नाम नहीं बल्कि आज़ादी का प्रतीक हैं। उन्होंने अपने बलिदान से यह संदेश दिया कि देशभक्ति और साहस किसी भी ताक़त से बड़ा होता है। आज भी भारतवासी उन्हें गर्व और श्रद्धा से याद करते हैं।
चंद्रशेखर आज़ाद भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे। उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। उन्होंने अंग्रेज़ों से लड़ते हुए कभी हार नहीं मानी और अंत तक "आज़ाद" ही रहे।
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के भाभरा गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था। बचपन से ही वे साहसी और निडर स्वभाव के थे।
आज़ाद बनारस में पढ़ाई के दौरान गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। मात्र 15 साल की उम्र में गिरफ्तारी दी। अदालत में नाम पूछे जाने पर उन्होंने कहा -
इसके बाद वे हमेशा "आज़ाद" कहलाए।
आज़ाद ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) जॉइन किया और भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
उनकी प्रमुख गतिविधियाँ:
27 फरवरी 1931 को अंग्रेज़ों ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में आज़ाद को घेर लिया। लंबे संघर्ष के बाद जब उनकी गोलियाँ खत्म हो गईं तो उन्होंने आखिरी गोली खुद पर चला ली। वे अंग्रेज़ों के हाथ कभी नहीं आए।
आज़ाद का नाम भारत के युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उनके नाम पर पार्क, संस्थान और स्मारक बनाए गए हैं। उनका जीवन संदेश देता है कि – “देश के लिए जीना और मरना ही सच्ची आज़ादी है।”
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चंद्रशेखर आज़ाद का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक स्वर्णिम अध्याय है। वे सचमुच भारत माता के सच्चे सपूत थे।
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