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शायरी – कॉपीराइट-फ्री (CC0) | Blogger के लिए सुंदर HTML

नई मौलिक शायरी – CC0 (Public Domain)

प्रकाशित: 14 August 2025 • उपयोग की अनुमति: बिना श्रेय भी इस्तेमाल/रीपोस्ट कर सकते हैं
आग़ाज़
सूरज को जेब में रखकर मैं निकला आज,
छाँव भी मेरी क़दमों से उजाला माँगे।
धूप
तेरे बिना ये सर्द धूप भी चुभने लगी,
तू आए तो मौसम मेरी त्वचा हो जाए।
लम्हा
एक लम्हे ने मेरे साथ ऐसा वादा किया,
उम्र भर पलकों के साए में ठहरने लगा।
रिश्ता
तार नहीं, न कोई गाँठ थी दरम्यान,
साँस से साँस बस ख़ामोशी के धागे थे।
खुशबू
तेरे जाने के बाद घर में जो सन्नाटा था,
मेरी किताबों ने पन्नों से ख़ुशबू बोली।
समंदर
किनारों ने समझाया बहुत थमी रहो,
मैं लहर था—तेरे शहर तक पहुँच आया।
परछाई
तुम्हारी परछाई से दोस्ती कर ली मैंने,
रात में भी कोई मेरे साथ चलता रहा।
बारिश
बादल ने जब तुम्हारा नाम टपकाया,
मेरे आँगन में अक्षर-सा पानी बरसा।
मरहम
तुमने देखा तो ज़ख्म ने साज़ बजाना सीखा,
दर्द से भी एक नर्म-सी धुन निकली।
काग़ज़
काग़ज़ ने कहा, आँसू मत गिरने देना,
स्याही बह जाएगी—कहानी नहीं।
चुप्पी
तुम बोलते नहीं थे, पर हवाएँ सुनती थीं,
मैंने ख़ुद से कहा—ये भी संवाद है।
रात
रात की सिलाई में चाँद का धागा पिरोया,
सुबह ने कमीज़ पहन ली उजालों वाली।
मंज़र
तस्वीर में तुम थे, और मैं कैनवस पर,
रंग जो बिखरे तो दोनों खुशनुमा निकले।
खिड़की
खिड़की से झाँका तो शहर ठहरा-सा था,
तुमने मुस्कुराया—घड़ी फिर से चल पड़ी।
मिट्टी
मिट्टी ने कहा, कदम हल्के रखना ऐ दोस्त,
यहाँ किसी की दुआओं की चादर बिछी है।
रूह
रूह ने रूह से जब छैनी-सा सवाल किया,
पत्थर का मैं भी पानी सा बहने लगा।
ख़्वाहिश
चिड़िया की एक चाह थी आकाश जितनी,
मेरे हाथों से उड़ी—घर बड़ा लगने लगा।
प्यार
तेरे आने से शब्दों ने कपड़े पहने,
वरना जुमले नंगे-से ठिठुरते थे।
सफ़र
मंज़िल न पूछो, हमसफ़र दिलचस्प हो,
रास्ते खुद कहानी सुनाने लगते हैं।
वक़्त
घड़ी की सुइयों ने जब दुआ माँगी,
मैंने ठहरकर तेरे नाम का वक़्त लिखा।
दरीचा
दिल के दरीचे पर ताला पुराना था,
तुम हंसे—और चाभी मुस्कान निकली।
तारों
आँगन में तारों को उलटा टाँग दिया मैंने,
रात नीचे आई—घर आसमान हो गया।
ख़त
ख़त में मैंने भेजे नहीं, बोए अलफ़ाज़,
तुम पढ़ो तो दिल में पौधे उग आएं।
सवेरा
सुबह ने मेरी मेज़ पर उजाला रखा,
मैंने बदले में एक प्याली शुक्र अदा की।
दीवार
दीवारें अगर बोलतीं तो क्या कहतीं?
हमने चुप रहकर भी घर को ज़िंदा रखा।
निशानी
रेत पर नाम लिखकर मैंने समंदर देखा,
लहरों ने मिटाया नहीं—चूमा कर गईं।
चश्मा
आँखों पे तेरी याद का चश्मा चढ़ा है,
हर चेहरा तुम्हारा-सा साफ़ दिखता है।
दुआ
दुआ ने आज हथेली पर घर बना लिया,
रास्ता भी मेरी उंगलियों से मोड़ खा गया।
ख़ुशी
ख़ुशी ने धीरे से कान में बस इतना कहा,
तुम हो तो दुनिया को वजह मिल जाती है।
आशंका
डर को मैंने खिड़की पर बैठा छोड़ दिया,
अंदर हिम्मत ने दीपक जला रखा था।
अनसुना
जो बात सबसे ज़रूरी थी, अनसुनी रही,
तुम्हारी आँखों ने सब कुछ कह दिया।
हौसला
आँधियाँ बोलीं—दीये बुझे जाएंगे,
बात की—और लौ ने कंधा सीधा कर लिया।
मंज़िल-ए-दिल
दिल की मंज़िल पे कोई पत्थर नहीं लगा,
बस तेरी आहट ने रास्ता रोशन किया।

अगर चाहें तो “स्रोत: आपका ब्लॉग” लिख दें—ज़रूरी नहीं।

License: CC0 1.0 (Public Domain Dedication)

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